कविता

प्रेम

जब सरोबार हो जाता है
मन प्रेम में
मस्त हो जाता है अंग अंग
फिर थिरकता है
झूमता है
मदमस्त हो
उस प्रेम में
न उसे होश रहती देह की
न लाज और हया की
बस वो झूमता है
नाचता है
मस्त हो अपने आप में

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020