कविता

भ्रष्टाचार

अविश्वसनीय सा लगता है
पर भ्रष्टाचार का दीमक
हर ओर पहुँच ही जाता है,
अब क्या क्या, कहाँ कहाँ बताऊँ
अब तो कहते हुए भी शर्म लगता है।
अब आप ही बताइये
इसे क्या कहेंगे?
अब तो लाशों के साथ भी
भ्रष्टाचार होता है।
कौन है जो दावा कर सके कि
यहां भ्रष्टाचार नहीं होता है।
हर जगह भ्रष्टाचार दो कदम आगे है
कानून बाद में आता है
भ्रष्टाचार पहले ही
डेरा जमाये होता है।
या यूँ कहें कि आजकल
भ्रष्टाचार के बिना सबकुछ
अधूरा अधूरा सा होता है।
भ्रष्टाचारियों को भ्रष्टाचार के बिना
मोक्ष कहाँ मिलता है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921