हास्य व्यंग्य

खट्ठा-मीठा : जाने कहाँ गये वे दिन

अहा! वे भी क्या दिन थे! सरकार को हमारी सुरक्षा की इतनी अधिक चिन्ता रहती थी कि हर त्यौहार पर सुरक्षा चेतावनियाँ जारी की जाती थीं। उन चेतावनियों के साये में लोग सावधानी से त्यौहार मनाने की औपचारिकता निभाते थे। उनको हर समय डर लगा रहता था कि कोई रंग में भंग डालने वाला तो नहीं आ रहा है। इससे दिमाग चैकन्ना रहता था। अब वह सब सपना है। त्यौहार मनाने का मजा ही खत्म हो गया। जाने कितने साल हो गये कि कोई चेतावनी जारी नहीं हुई। इस सरकार को हमारी चिन्ता बिल्कुल नहीं है।

भला यह भी कोई बात हुई कि सीमाओं पर ही आतंकियों को ठोक देते हैं। उनको देश में भीतर नहीं घुसने देते। इससे जगह-जगह बम फूटने का जो आनन्द आता था, उससे हम वंचित हैं। फोकट में आतिशबाजी का मजा लूटते थे। अब सब सपना हो गया है।

एक समय था जब आतंकियों को दामाद बनाकर प्यार से रखा जाता था और रोज चिकन बिरयानी खिलायी जाती थी। हमें कसाब बहुत याद आता है, जो कभी लटकता ही नहीं था। हम उसे बिरयानी खिलाने का आनन्द उठा रहे थे। बुरा हो उस डेंगू मच्छर का, जिसने हमें इस आनन्द से वंचित कर दिया। अब तो ऐसा कोई दामाद हमारे पास नहीं है। बेचारों को सीमा पर ही मार डालते हैं या ट्रक में ही उनकी बिरयानी बना देते हैं।

वह भी एक युग था, जब हम आए दिन कल्याणकारी प्रवचन सुना करते थे- पैसे पेड़ों पर नहीं लगते, हमारे पास कोई जादू की छड़ी नहीं है, महँगाई देश की प्रगति के लिए आवश्यक है, गरीबी मानसिक अवस्था है आदि-आदि। महँगाई में अपने घर का बजट बनाने का आनन्द ही कुछ और था। फालतू चीजों में कटौती करके लिस्ट को छोटा करना हर किसी के वश की बात नहीं थी।

वे भी क्या दिन थे कि आए दिन लाखों करोड़ रुपयों के घोटाले हुआ करते थे, जितने संसार में हमारी नाक ऊँची रहती थी। हमारा देश कंगाल नहीं था। अब यह क्या बात हुई कि घोटाले होना ही बन्द हो गया? लगता है कि हम इतने कंगाल हो गये हैं कि घोटाले भी नहीं हो सकते। देश की नाक इतनी पहले कभी नहीं कटी।

उस समय हमारे पप्पू में इतनी ताकत थी कि संसद से पारित किसी भी कानून को सरेआम फाड़कर फेंक सकता था। अब है किसी की ऐसी औकात? धिक्कार है।

पूरे दस वर्ष तक हमने इस स्वर्ग समान युग का आनन्द उठाया। हम तो चाहते हैं कि हमारे वे दिन फिर से वापस आ जायें। हमें नहीं चाहिए ये शान्ति के दिन। हमें तो दंगों, घोटालों और मार-काट वाला युग ही चाहिए। इसलिए हमने कमर कस ली है कि अगले चुनावों में हम फिर वैसी ही सरकार लायेंगे।

— बीजू ब्रजवासी