कविता

चाय पर वार्ता

पास बैठो दो पल
चुस्कियां लो
गरम गरम चाय की
दो तुम कहो
दो हम कहें
बात अपने अपने
दिलों की
जो मंद पड़ चुकी है
आग रिश्तों की
चलो उन्हें एकबार
फिर गर्म करते हैं
दिलों की रंजिशों को
अब चलो
विराम देते हैं
जिंदगी बहुत लंबी है
कब तक रंजिशों
के बोझ को ढोएं हम
चलो आज बैठो
मिलकर
इसका अंत करते है

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020