गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

तेरी इन आंखों में शोख शबनम, गज़ब हुनर से चमक रही है।
तेरे इन होठों पे एक सरगम, जहां की महफ़िल ग़ज़ल रही है।
कहीं उदासी कहीं है खुन्नस कहीं तरन्नुम का ज़लज़ला है।
तेरी इन जुल्फों की सरसराहट, हवा में जैसे फिसल रही है।
जो तुम न होते वफा न होती, नहीं मुहब्बत का जाम होता।
तेरे ख्यालों में जैसे जन्नत, यहां वहां बस खिसक रही है।
जो तुम न होते न होती चाहत, हमारे दिल से कोई तो पूछे।
मेरे हृदय की तुम्हीं हो धड़कन, तेरी वजह से धड़क रही है।
तू मुस्कुरा के चलो अगर तो, ये चांद तारे कहां छिपेंगे
तेरे लबों से गुलाब खिलता, हवा में खुशबू बिखर रही है।
तुम्हारी भौंहें कमान जैसी, नजर में शर की सजी है तरकश।
बनी रहो अप्सरा की मूरत, हवा में थिरकन छनक रही है।
— जवाहर लाल सिंह