कवितापद्य साहित्य

रिश्तें भी पकते है मेरी रसोई में

रिश्ते भी पकते है मेरी रसोई में।

कुछ खटास में कुछ मिठास मिलाती है रसोंई भी।

जब साथ बैठ हम खाना खाते है तो बिगड़े हुए कुछ रिश्तें भी बचाते है।

सिर्फ खाना नहीं रिश्ते भी पकते है मेरी रसोंई है।

जब होली पर गुजिया तली जाती है,
चाशनी में रिश्तों की मिठास घोली जाती है।

दीपावली पर गर्म गाजर के हलवे पर,
प्यार और अपनेपन की सजावट से रिश्तों को महकाया जाता है।
कुछ इस तरह रिश्तों को सजाया जाता है।

कौन कहता है रसोई में सिर्फ मसाले ही मिलते है।
गौर से देखना कभी चाय की गर्म चुस्की में अदरक के साथ बैर और जलन भी कूट जाती है।

छोटी इलायची की खुशबू प्यार में बदल जाती है।

वर्षो बाद जब अपने मिलते है,
चाय पर ही सारे भेद खुलते है।

बारिश में जब कड़ाही पर पकोड़े तलते है।
चटनी के साथ रिश्तें भी सिकते है।

पकोड़ों की गर्मी में दिलों की गर्मी शांत हो जाती है।
जब चाय के साथ गर्म पकोड़े की प्लेट मिल जाती है।

लोहड़ी पर बने मीठे चावल
में रिश्तों का रंग मिलता है।

बसंत पंचमी पर गुलाल संग अमीर जैसे खिलता है।
फैमिली में हर रिश्ता वैसे मिलता है।

तेज गर्मी में शिंकजी की मिठास ताजगी देती है।
मेरी रसोई में रिश्तों की स्फूर्ति मिलती है।

ठंडी ठंडी आइस क्रीम से दिलों की गर्मी भी मिटती है।
रिश्तों की मिठास से रसोई जब सजती है।।

संध्या चतुर्वेदी
मथुरा उप

संध्या चतुर्वेदी

काव्य संध्या मथुरा (उ.प्र.) ईमेल sandhyachaturvedi76@gmail.com