सामाजिक

संयम ओर सहनशीलता का मतलब ? 

“खुद के ही विरुद्ध युद्ध”
कभी कभी संयम और सहनशीलता को कमज़ोरी की श्रेणी में रख दिया जाता है। हमारे मौन का मतलब लोग कुछ ओर ही निकाल लेते है और हमारे अस्तित्व के उपर प्रश्नार्थ लगा लेते है।
अगर आप सही हो तो सच को चिल्ला चिल्ला कर बोलो संयम इंसान को अंदर ही अंदर मार देता है। और प्रताड़ना का प्रतिकार करो नतमस्तक से हाँ में हाँ भरना और सहना कायरता की निशानी है। सहना मतलब अंतर्द्वंद्व खुद के ही विरुद्ध जंग। सहना आसान नहीं भीतर से अंतरात्मा की मृत्यु हो जाती है।
तो संयम रखो क्रोध पर, गुस्से पर, और वाणी पर लेकीन सच बोलने पर संयम कभी ना रखो। इन तीन चीज़ों पर संयम बहुत सारी विपदा को खत्म कर देगा। पर सच बोलने पर संयम खुद को कमज़ोर कर देगा।
सच बोलने पर संयम रखकर क्यूँ करना है खुद के ही हाथों खुद को परास्त।
क्या हम इतने कमज़ोर है की सच को मुखर नहीं कर सकते, या किसीके मुँह पर सच कहने की हिम्मत नहीं रखते। या हम पर जो बीत रहा है उसका सामना नहीं कर सकते, प्रतिकार नहीं कर सकते।
क्यूँ कोई ओर हमें चाबी भरकर खिलौने की तरह इस्तेमाल करें ओर हम संयम में रहकर सहते रहे। इतना सह कर महान क्यूँ बनना है? प्रताड़ने वालों के विरुद्ध हिम्मत दिखाओ फिर देखो सामने वाला खुद संयम में रहेगा। कोई मेडल नहीं मिलने वाला अगर आप सहते-सहते या संयम रखते रखते शहीद भी हो जाओगे। बल्कि मूर्ख और बेवकूफ की कतार में खड़े कर दिए जाओगे। जिसे लोग कमज़ोर कहते है।
झुकाती है दुनिया झुकने वाला चाहिए
तो क्यूँ झुकना है भै ? क्यूँ न खुद को सक्षम बनाए, जहाँ पर खुद को साबित करना हो वहाँ अपना पक्ष रखने जितनी हिम्मत ओर हौसला हर किसी में होना चाहिए। मूक नहीं मुखर बनों
अनकहा अधजिया ओर शुष्क अस्तित्व लेकर जीने वाला एक मृतप्रायः इंसान मत बनिए। खुद के साथ द्वंद्व करके संयमित जीवन जी कर और सहनशीलता की मूर्ति बनकर ज़िंदगी के साथ समझौता मत करो। बस जहाँ कोई हमें हराने की कोशिश करे वहाँ अपने आप को एक आत्मविश्वास के साथ पूरवार करो।
संयम की सीमा भी खुद तय करो एक हद के बाद किसीको कोई हक ना दो की वो हमारी शख़्सीयत पर सवार हो जाए, सहना कायरता की निशानी है और खुद को सज़ा देना पाप है।।
— भावना ठाकर

*भावना ठाकर

बेंगलोर