कविता

भईया के बनिहार बने सरकार

मंच मंच हुआ खूब प्रचार,
  सत्ता दे दो मालिक अंतिम बार।
सेवा करूंगा फिर से पुरजोर,
     विनती कर रहा हूं हाथ जोड़।
फिर भी जनता एक न मानी,
  सबक सिखाने को मन में ठानी।
जब आया अंतिम परिणाम,
      साहब गिरे औंधे मुंह धड़ाम।
जोड़-तोड़ से गद्दी मिल गया,
    पर अपनी बुनियाद हिल गया।
जिनके बदौलत बनी सरकार,
    सच कहें वही असली सरदार।
पहले थे सत्ता की साझेदार,
    अबकी बने भईया के बनिहार।
राजनीति लेने लगा है करवट,
    बुड्ढा बैल कभी न दौड़े सरपट।
बीच मे बैलगाड़ी न उलट जाए,
     इसलिए एक न दो-दो जुताए।
मौका मिलते ही बैल बेच देंगे,
     कमान अपने हाथों में ले लेंगे।
वे पछताएंगे मलमलकर हाथ,
     पलटने में माहिर जो दिन-रात।
कुछ नमूना दिखाई दे दिया है,
      काका के इस्तीफा ले लिया है।
मंच मंच हुआ खूब प्रचार,
  सत्ता दे दो मालिक अंतिम बार।
— गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम

गोपेंद्र कुमार सिन्हा गौतम

शिक्षक और सामाजिक चिंतक देवदत्तपुर पोस्ट एकौनी दाऊदनगर औरंगाबाद बिहार पिन 824113 मो 9507341433