कविता

गायब होती जिंदगी

शहरों से हो रही हरियाली गायब
जिंदगी से खुशहाली है गायब
ईयरफोन बन गया है कानों का गहना
जिससे कानों की बाली है गायब।

त्योहारों से हो रही खुशहाली गायब
ईद, होली और दिवाली की खुशियाँ गायब
उतर रहा है आंखों से पानी
सबके चेहरे की लाली गायब।

अफवाहों का बाजार है जिंदा
चेहरे की मासूमियत है गायब
मीठे लोग भी हो गये है जहरीला
रिश्तें नाते और भाईचारा गायब।

— मृदुल शरण