सामाजिक

क्या हम क्या हमारा, सोचो साथ क्या जाएगा यारा

यह विचारणीय तथ्य है मित्रों कि जब हमारा जन्म होता है तब हम वस्त्र विहीन होते हैं और जब आखिरी समय पर लाश चिता पर लिटाई जाती है तब भी जिस कफ़न से शरीर ढका जाता है वह कफ़न आग की लपटों में पहले ही जल जाता है और इंसान का शरीर फिर बसन विहीन हो जाता है। अर्थात दुनिया में बिना लिबास के आए और बिना लिबास चलते बने फिर समझ नहीं आता कि सारी उम्र इंसान ये तमाशाई दुसाले ओढ़ कर आखिर किसको भरमाने की कोशिश करता है खुद को या औरों को ? ये गाड़ी,बंगला धन,दौलत,गुरुर,घमंड,सोना,जवाहरात,जमीन ,परिवार? जब तन को ढँके कपड़े भी पहले जले,धर्म-अधर्म, नीति-अनीति धन दौलत जतन-जतन कर पाई-पाई जोड़ी लड़ाई झगड़ा भी किया । कोर्ट कचहरी थाना तहसीली दुनिया भर के स्वांग रचे इस धरती पर आकर तुम ने।
पर क्या मिला? ना जाने कितने लोगों का दिल दुखाया,अपनों का खून बहाया , माँ के गर्भ से जैसे निकला ठीक उसी तरह अंतिम विदा भी, ये भाई बंधु मित्र सब मरघट तक संग जाते हैं,स्वारथ के दो आंसू रोकर लौट के घर को आते हैं,कंचन जैसी काया तुरंत जलाई जाती है।जिस नारी से प्रीत घनेरी वो भी देख डर जाती है।
जब पैदा हुआ वही चार छः लोग अंतिम समय भी वही चार छः लोग तेरे साथ कौन आया अब कौन गया कोई नही!शिवाय तेरे कर्म के न तब कोई था न अब कोई है।
पर नही मानेंगे धन दौलत के लिए अपने पराये घर परिवार कोई भी हो लड़ेंगे मरेंगे जोड़-जोड़ कर रखेंगे पर सत्य को देखना स्वीकार नही कर सकते। जिंदगी सबको मिलती है पर जिंदगी जीना हर किसी को नहीं आता।
— आशीष तिवारी निर्मल 

*आशीष तिवारी निर्मल

व्यंग्यकार लालगाँव,रीवा,म.प्र. 9399394911 8602929616