बोधकथा

मत कहें तुम्हारी परेशानी से हमें क्या लेना

एक गांव में एक साहूकार अपने मां के साथ रहता था। उसके कोई बच्चे नहीं थे।बच्चे नहीं होने के कारण साहूकार अपनी पत्नी से नफरत करने लगा था इसलिए पत्नी भी उसे छोड़कर अलग रहने लगी थी।अब साहुकार गांव का प्रधान बन गया था।साहूकार के घर में एक तोता एक मोर और एक भेड़ उसकी मां ने पाल रखी थी।उसके घर के पिछवाड़े में एक शरारती चूहा भी रहता था जो तोता,मोर और भेड़ से दोस्ती कर लिया था।सभी साथ साथ बहुत खुश रहते थे। बुढ़िया अपने पालतू जीव को जो कुछ खाने के लिए देती उसमें से बचे हुए अनाज के दाने चूहा भी आकर चुपके से खा लेता था।
उधर प्रधान बनने के कारण साहूकार की जरूरतें बढ़ गई थी। क्योंकि अब रोज उससे मिलने के लिए कई लोग आने लगे थे‌।इसलिए अपनी सहायता के लिए साहूकार ने एक मुंशी रख लिया।दोनों मिलकर अब अपने प्रधानी को बनाए रखने के लिए नित्य नए-नए प्लान बनाने लगे।जो कोई भी उनका विरोध करता उन लोगों को साहूकार और उसके मुंशी मिलकर समूल नाश कर देते।उनके कुकृत्य से सारे विरोधी आपस में बंटकर पस्त पड़ने लगे थे। जिसके कारण साहूकार बिल्कुल उन्मुक्त तरीके से जी में जो आता है वह फैसले लेने लगा। जब कभी भी कोई उसके विरोध में स्वर उठाता उसे बदनाम कर अपनी राजनीति की रोटी सेंकने लगा था। किसी को विरोधियों की चाल में फंसे होने का तमगा दे देता तो किसी को राजद्रोही बताकर बदनाम कर देता। किसी भी तरह से जनता और विरोधियों में एकता कायम नहीं होने देता। साहूकार के सनक भरे फैसले से जनता त्राहि त्राहि करने लगी। लेकिन आपस में एकता नहीं होने की वजह से कोई उसका विरोध नहीं कर पाता। जिसका लाभ उठाकर सहुकार अपनी गद्दी बचाए रखने में कामयाब हो जाता।
एक दिन साहूकार के मुंशी कहीं बाहर से आया और अपना कपड़ा उतार कर बाहर ही कुर्सी पर रख दिया। रात को जब चूहा अपने मित्रों से मिलने पहुंचा तो कुर्सी पर रखें कपड़े के अंदर से मूंगफली का सुगंध उसके नाक तक पहुंचा। सुगंध मिलते ही चूहे की बांछें खिल गई वह तुरंत उछल कर कुर्सी चढ़ गया और कपड़ों के अंदर मूंगफली ढूंढने लगा। चूहा को मुंशी के कोट के अंदर मूंगफली मिल गया पर वह उसके मुंह तक नहीं पहुंच पा रहा था।इससे चूहा गुस्सा गया और कोट को कई जगह कुतर डाला और मजे लेकर मूंगफली खाने लगा।
सुबह जब मुंशी नहा धोकर प्रधान के साथ बाहर जाने के लिए तैयार हुआ तो अपना कपड़ा ढूंढने लगा। कपड़े को अपने कमरे में नहीं पाकर वह बाहर दौड़ा जहां वह कपड़े को कुर्सी पर रख दिया था।जैसे ही वह अपना कोट पहने के लिए उठाया उसमें कई जगह छेद नजर आए इससे वह आग बबूला हो गया। वह समझ गया यह सब उस चूहे का करतूत है जो उसके पालतू जीवों के साथ रहता है। मुंशी यह बात प्रधान को बताया। प्रधान ने कहा जब हम अपने विरोधियों को नहीं बख्शते हैं तो यह चूहा क्या चीज है!जाओ आज ही बाजार जा कर एक चूहेदानी लाओ इसे पकड़कर मजा चखाएंगे।
मुंशी शाम को चूहेदानी लेकर आ धमका। जिस पर चूहे की नजर पड़ गई। चूहा सोचा मुंशी आज अपने हाथ में क्या लेकर आया है चलो जरा नजदीक से देखता हूं! वह नजर बचाकर देखने लगा तो मालूम पड़ा यह तो हमारे लिए काल लेकर आया है। घबरा गया उसे अपनी मौत नजदीक जान पड़ी।अब उसे अपने मित्रों की याद आई।वह घबराया हुआ अपने मित्र तोता के पास पहुंचा और अपनी समस्या बताई। तोता ने कहा तुम्हारी जान सांसत में आ पड़ी है तो भला इसमें मैं क्या करूं हमें तो कोई परेशानी नहीं है।प्रधान हमें नित्य बड़े प्यार से दाना चुगता है फिर मैं तुम्हें सहयोग कर प्रधान से नाराजगी मोल क्यों लूं। तुम अपनी समस्या का समाधान खुद ढूंढो। तोते की बात सुनकर चूहा बिल्कुल मायूस हो गया।अब वह मोर के पास पहुंचा और उसे भी अपनी परेशानी बतलाई। मोर बोला यह बात हमें क्यों बता रहे हो।तुम अपनी समस्या हम पर डालने की कोशिश मत करो। तुम तो देखते हो प्रधान हमें रोज बड़े मजे से अपने साथ-साथ सैर करवाता है। मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता। चूहा मोर की बात सुनकर और हैरान परेशान हो गया। अंत में वह अपने मित्र भेड़ के पास जाकर अपनी आपबीती सुनाई। भेड़ ने बिल्कुल फटकारते हुए कहा जब तुझे तोते और मोर ने कोई सहायता नहीं की तो तुम्हें हम ही सबसे मूर्ख दिखाई दे रहे हैं। देखते नहीं हो साहूकार मुझे अपने आंखों के सामने बांधकर रखता है। मैं उसे धोखा नहीं दे सकता। तुम अपनी समस्या खुद झेलो।
चूहा के पास अब कोई रास्ता नहीं बचा था। इसलिए वह थक हार कर चूहेदानी से बचकर रहने लगा। एक रात चूहा प्रधान के घर में बिखरे अनाज खा रहा था इसी बीच अपनी ओर एक सांप को आते हुए देखा वह घबराकर सांप से बचने के लिए चूहेदानी में घुस गया। सांप भी चूहे को पकड़ने के लिए पीछे पीछे चूहे दानी में जा घुसा। अब दोनों के प्राण संकट में फंस गया था। चूहा ने डरते डरते सांप से कहा सांप काका तुम बेशक मुझे मारकर खा लेना पर पहले अपने प्राण बचाने के बारे में सोच लो।अगर तुम्हारे प्राण मुझे खा लेने से बच जाता है तो मैं तुम्हारे मुंह के सामने बैठा हूं तुम मुझे खा लो। पर सोच लो अगर चूहेदानी की खटखट से घर में कोई जाग गया तो तुम भी नहीं बचोगे।आज हम दोनों एक साथ संकट में हैं और संकट में जो साथ दे उससे बड़ा कोई मित्र नहीं होता। यह बात तुम अच्छी तरह से समझ लो अगर आज तुम बच गए तो मुझ जैसे हजारों चूहे खाने को मिलेंगे। इस पर सांप ने कहा तुम ठीक कह रहे हो हमें पहले बचने के बारे में सोचना चाहिए। कुछ देर सोचने के बाद सांप ने कहा हम ऐसा करते हैं तुम मुझे ढककर बैठ जाओ। जैसे ही तुमको कोई पकड़ने की कोशिश करेगा हम उसे डंस लेंगे और इस तरह हम दोनों का प्राण बच जाएगा। चूहा ने सहमति में सर हिला दिया। इसी बीच चूहेदानी से खटखट की आवाज सुनकर साहूकार की मां जाग गई उसे समझते देर नहीं लगी कि चूहा चूहेदानी में फंस गया है और बचने के लिए उछल कूद कर रहा है। बुढ़िया अंधेरे में ही चूहेदानी से चूहा निकालकर मारने के लिए सोची।जैसे ही चूहेदानी को खोलने की कोशिश की सांप ने उसे डंस लिया।वह चीख पड़ी जिससे उसके मुंह से आवाज निकली आह बाप मुझे सांप ने डंस लिया। जब तक साहूकार और मुंशी आते चूहा और सांप दोनों साहूकार और मुंशी की प्लान को पलीता लगाते हुए वहां से रफूचक्कर हो गए थे। साहूकार ने मुंशी की सहायता से अपनी मां को लेकर वैद्य के पास पहुंचा जहां घंटों उसका इलाज किया गया तब जाकर बुढ़िया ने आंखें खोली।बुढ़िया की आंख खुलते ही सभी ने राहत की सांस ली। वैद्य ने कहा अब आपकी मां को हम बचा लेंगे लेकिन इसके लिए हमें तत्काल इन्हें तोते का जूस पिलाना पड़ेगा।आप फौरन इसका इंतजाम कीजए। प्रधान को तुरंत अपने पालतू तोते के बारे में याद आया। उसने मुंशी को कहा तोते को घर से लाकर उसके मांस का जूस तैयार कर मेरी मां को दे दो। बुढ़िया जब ठीक हो कर घर आई तो उसे देखने के लिए उसके मायके से उसके भैया भाभी पहुंचे जिन्हें घर में एक बड़ा ही मांसल मोर दिखाई दिया। रात में जब प्रधान ने उनसे खाने के इच्छा के बारे में पूछा तो इन लोगों ने कहा हमें अपने घर के मोर का मांस खिला दो तो हमें बहुत खुशी होगी।मोर का मांस खाए बहुत दिन हो गया है।प्रधान ने खुशी-खुशी सहमति दे दी।मुंशी ने मोर को काटकर उसका मांस पकाकर बुढ़िया के भैया भाभी को परोस दिया। वे लोग चटकारे लेकर मोर को पचा दिए।
जब बुढ़िया पूर्ण स्वस्थ हो गई तो इस खुशी में प्रधान ने अपने रिश्तेदारों एवं चाहने वालों के लिए एक दावत के आयोजन करने के बारे में सोचा।जब इसके बारे में अपने मुंशी को बताया तो मुंशी ने सलाह दी क्यों नहीं घर के भेड़ का मांस दावत के लिए पकाया जाए जिसे हम लोगों ने खिला पिला कर मोटा ताजा बनाया है आखिर यह किस दिन काम आएगा। इस तरह से दावत के लिए भेड़ को काट दिया गया और उसका मांस पकाकर आगंतुक मेहमानों को परोसा गया।इस तरह से एक-एक कर प्रधान ने अपने सभी पालतू लोगों को ठिकाने लगा दिया। परंतु कमजोर चूहा अपने विवेक के बदौलत शातिर और षड्यंत्रकारी साहूकार एवं उसके मुंशी के चंगुल से बचने में कामयाब रहा।जिस तरह से दो लोगों ने मिलकर अपनी जान बचा ली अगर वैसे ही सबों में एकता हो तो उन्हें कितनी भी बड़ी समस्या और कैसा भी शक्तिशाली दुश्मन हो कुछ नहीं कर सकता है। हमें कभी भी परेशानी में फंसे लोगों को यह नहीं कहना चाहिए कि तुम्हारी परेशानी से हमें क्या लेना। बल्कि उन्हें यथा संभव मदद करना चाहिए क्योंकि आपस में मिलकर ही समस्या से निजात पाया जा सकता है अन्यथा तोता,मोर और भेड़ के जैसे दुर्गति होना लाज़मी है।
— गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम

गोपेंद्र कुमार सिन्हा गौतम

शिक्षक और सामाजिक चिंतक देवदत्तपुर पोस्ट एकौनी दाऊदनगर औरंगाबाद बिहार पिन 824113 मो 9507341433