राजनीति

किसान आंदोलन पर विरोध क्यों

                   विश्व भर में कृषि को देखते हुए सभी देशों में भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश के विकास में कृषि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आजादी से पहले भी भारत की सत्तर फीसदी आबादी किसान हैं। देश में अन्नदाताओं की अहम भूमिका होने के कारण आज देश का प्रत्येक नागरिक दो वक्त की रोटी खा पा रहा है। प्रत्येक नागरिक, राजनेता एवं साहित्यकार जानते हैं, कि बिना अन्नदाता के देश का भला नहीं हो सकता! जिस देश का किसान मेहनत करता है, वह देश स्वत: ही संपन्न हो जाता है। भारत में आजादी से पहले भी उसकी किस्मत में सिर्फ और सिर्फ मेहनत ही लिखी है। देश में आजादी से पहले जमींदारी प्रथा थी। जिसमें अन्नदाताओं को पूर्ण रूप से शोषण किया जाता था। जमींदार फसल में से तीन हिस्सा अपने पास एवम् एक हिस्सा किसान को देता था। दिन पर दिन अन्नदाता इस तरह से करीब होता चला गया। आज तो नए भारत में कृषि कार्य हेतु नए उपकरण आ गए हैं। लेकिन जमींदारी के समय किसान फावड़े और बेलों से खेती करता था।
अन्नदाता खेती करने के लिए बंजर जमीन को मेहनत करके अपने हाथों की लकीरों को मिटा लेता है। किसान ना दिन देखे ना रात उसे कुछ महसूस नहीं होता है, कि मौसम क्या होता है। वह हर मौसम में देश के नागरिकों का पेट भरने के लिए दिन रात एक कर देता है। साथ ही वह पेट भर के खाना नहीं खा पाता है, कभी-कभी उसकी किस्मत में दो वक्त की रोटी भी नहीं होती हैं। शहर के अमीर लोग एवम् राजनेता मैकडोनाल्ड में बर्गर,पिज़्ज़ा, सैंडविच,पास्ता आदि खाते हैं। वह सब अन्नदाताओंं की ही देन है। देश में चौहत्तर वर्ष आजादी के पूरे हो चुके हैं। अमीर लोग और अमीर होता चला जा रहा है। बल्कि किसान और गरीब मजदूर दिन पर दिन गरीब होता जा रहा है। आज समूचे भारत में अन्नदाता सड़कों पर है इतनी तेज ठंड में अपने घरों से बाहर दिल्ली की सड़कों पर डेरा डाले हुए हैं। इसका कोई ना कोई कारण रहा होगा। जब जब प्रजा का शोषण होता है, तब अंत में आकर प्रजा उग्र हो जाती है और राजा का पतन कर देती है। इसी प्रकार आज देखने को मिल रहा है कि देश का किसान,मजदूर अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहा है। जिसमें देश भर में किसान यूनियन तथा तमाम मजदूर संगठनों के नेतृत्व में किसान आंदोलन हो रहा है।
अब बात करते हैं कि किसान आंदोलन क्यों रहे हैं। बता दें कि कोरोना काल में राष्ट्रपति महोदय जी के द्वारा एक अध्यादेश जारी किया गया। जिसमें किसानों के लिए तीन बिल बनाकर पहले तो लोकसभा फिर राज्यसभा में पारित करने के बाद राष्ट्रपति महोदय जी के सम्मुख प्रस्तुत करके उसे विधेयक का रूप दे दिया। ऐसा करना गलत था। क्योंकि जो लोगों ने मांगा ही नहीं उसे बनाया क्यों गया और बनाया भी तो किसानों से विचार-विमर्श क्यों नहीं किया। अब बात करते हैं किसानों के तीन नए विधेयको की।
प्रथम विधेयक “कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य” (संवर्धन और सरलीकरण) इस पर किसानों का कहना है। कि इसके बाद धीरे-धीरे एम०एस०पी० (न्यूनतम समर्थन मूल्य) के ज़रिए फसल खरीद बंद कर दी जाएगी
दूसरा विधेयक “कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन” और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020, किसानों का तर्क है कि किसी विवाद की स्थिति में एक बड़ी निजी कंपनी निर्यातक, थोक व्यापारियों या  प्रोसेजर जो प्रयोजक होगा तो उसे बढ़त होगी।
तीसरा “आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक 2020” किसानों का कहना है, कि बड़ी कंपनियों को किसी फसल का अधिक भंडार करने की क्षमता होगी। इसका अर्थ यह हुआ कि फिर से कंपनियां किसानों को कम दाम तय करने को मजबूर करेंगी।
देश की सरकार कह रही है, विपक्ष किसानों का आंदोलन करवा रहें है। ऐसा कहना ग़लत है ये कोई राजनीति नहीं है वल्कि किसान अपना हक मांग रहे हैं। देश के अन्नदाता को डर है कि भविष्य में उनसे उनकी खेती करने का अधिकार ना छीन लिया जाए। इसलिए पूरे भारतवर्ष के अन्नदाता सड़कों पर उतर चुके हैं। जिसमें मुख्य रुप से पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश,राजस्थान व अन्य प्रदेशों के किसान दिल्ली कूच कर चुके हैं। सभी देशवासियों व प्रत्येक नागरिक से अपील करता हूं। कि किसान आंदोलन का विरोध ना करें जबकि समर्थन करना चाहिए। जिससे उनका हक मिल सके। अगर उनका हक नहीं मिला तो किसान,मजदूरों को  मजबूर होना पड़ेगा। आखिर अन्नदाता का हक जरूरी है………..
— अवधेश कुमार निषाद मझवार 

अवधेश कुमार निषाद मझवार

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