हास्य व्यंग्य

मुंगेरी लाल के हसीन सपने

सुबह उठकर चाय पीकर ध्यान का अभ्यास करने के बाद मैं अपनी छत पर शरीर को स्वस्थ रखने के लिए कुछ एक्सरसाइज, दौड़, लाफिंग एक्सरसाइज, ताली बजाने आदि में एक घंटा व्यस्त रहता हूं.
आज भी यह सब कार्य मैंने किए .दोपहर का खाना खाने के बाद ठंड की वजह से फिर छत पर चला गया और ठहलता रहा. इसी बीच पत्नी भी अपने घरेलू काम निपटा कर अा गई. कुछ और फ्लैटों की महिलाएं भी आकर गप्पे सप्पों में लग गई. मैंने पत्नी से फ्लैट की चाबी लेकर कहा कि मैं नीचे जा रहा हूं और नीचे अा गया.
मुझे लगा कुछ फल नहीं है चलो लेटने से बेहतर है कुछ फल ले आयूं. यह सोच मैंने दो थैले लिए और किचन में रखी दो दिनों की गाय की रोटी ली , मुंह पर रुमाल बांध कर अपनी एक्टिवा से बाजार को निकल गया. मैं जब भी घर से बाहर निकलता हूं तो रुमाल का मास्क के रूप में प्रयोग करता हूं. बाज़ार पहुंच कर पहले पपीता,सेव,अमरूद और केला खरीदा फिर पास ही सब्जी मंडी में खड़े ठेलों की तरफ बढ़ गया यह सोचकर कि सब्जी भी ले लो नहीं तो कल फिर आना पड़ेगा.बाज़ार से मैंने मटर, टमाटर,गाजर, मूली,भरते वाले बड़े बड़े दो बैंगन,लौकी, नीबू खरीद लिए. घर आकर बहुत थक गया और बिना दरवाजा बन्द किए लेट गया इस कारण की काफी थक गया हूं कहीं आंख न लग जाए.
कुछ ही देर में मेरी आंख लग गई और सिलसिला फिल्म का यह गाना आंखों के सामने चलने लगा:
मैं और मेरी तन्हाई
अक्सर ये बातें करते हैं
तुम होती तो कैसा होता
तुम ये कहती, तुम वो कहती
तुम इस बात पे हैरां होती
तुम उस बात पे कितनी हँसती
तुम होती तो ऐसा होता
तुम होती तो वैसा होता
मैं और मेरी तन्हाई
अक्सर ये बातें करते हैं

ये कहाँ
आ गये हम
यूँही साथ साथ चलते
तेरी बाहों में है जानम
मेरे जिस्म-ओ-जान पिघलते
ये रात है
ये तुम्हारी ज़ुल्फ़ें खुली हुई हैं
है चाँदनी या तुम्हारी नज़रों से
मेरी राते धुली हुई हैं
ये चाँद है
या तुम्हारा कँगन
सितारे हैं या तुम्हारा आँचल
हवा का झोंका है
या तुम्हारे बदन की खुशबू
ये पत्तियों की है सरसराहट
के तुमने चुपके से कुछ कहा है
ये सोचता हूँ मैं कब से गुमसुम
कि जबकी मुझको भी ये खबर है
कि तुम नहीं हो
कहीं नहीं हो
मगर ये दिल है कि कह रहा है
कि तुम यहीं हो
यहीं कहीं हो तू बदन है मैं हूँ छाया
तू ना हो तो मैं कहाँ हूँ
मुझे प्यार करने वाले
तू जहाँ है मैं वहाँ हूँ
हमें मिलना ही था हमदम
इसी राह पे निकलते
यूँही साथ साथ चलते मेरी साँस साँस महके
कोई भीना भीना चन्दन
तेरा प्यार चाँदनी है
मेरा दिल है जैसे आँगन
हुयी और भी मुलायम
मेरी शाम ढलते ढलते
ये कहाँ
आ गये हम
यूँही साथ साथ चलते मजबूर ये हालात
इधर भी है उधर भी
तन्हाई की ये रात
इधर भी है उधर भी
कहने को बहुत कुछ है
मगर किससे कहें हम
कब तक यूँ ही खामोश रहें
और सहें हम
दिल कहता है दुनिया की
हर इक रस्म उठा दें
दीवार जो हम दोनो में है
आज गिरा दें
क्यों दिल में सुलगते रहें
लोगों को बता दें
हां हमको मुहब्बत है
मोहब्बत है, मोहब्बत
अब दिल में यही बात
इधर भी है, उधर भी
तभी मुझे बड़ी झिझोड़ के साथ उठा दिया यह किस से कह रहे हो कि तुम होती तो ऐसा होता, तुम होती तो वैसा होता. रिटायर क्या हो गए पगला गए हो. चाय बन गई है पी लो ठंडी हो जाएगी. मैं उठकर डायनिंग टेबल पर पहुंच गया . दो ब्रेड के पीस भी सिके हुए नमक बुरके हुए रखे थे . चाय और ब्रैड का आंनद ले मैं फिर रजाई में घुस गया.
मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखने.
लगता है वोह सही कह गई कि पगला गए हो

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020