गीतिका/ग़ज़ल

अब बचा लो तुम

मुझे नहीं, इस बारिश को अब बचा लो तुम
सालों से बेलिबास हैं, गले इसे लगा लो तुम

कहते हैं कभी पूरे शबाब पे हुआ करती थी
अब दिखती भी नहीं, फिर इसे बुला लो तुम

ये सूखे पेड़, ये प्यासे पंछी और ये गर्म हवाएँ
जो आस में हैं, उस बारिश को मँगा लो तुम

हर एक बूँद को जिस ने बचाकर रखना था
धूल पड़ी उस फाइल को कुछ चला लो तुम

बारिश के बहाने आँखें आसमाँ देख लेती थी
फिर से दीदार हो, कोई तरकीब लगा लो तुम

किसी कोने, कहीं किसी गली में फँसी हुई है
किसी बिछड़ी औलाद की तरह उठालो तुम

— सलिल सरोज

*सलिल सरोज

जन्म: 3 मार्च,1987,बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार)। शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरी कॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)। प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका"कोशिश" का संपादन एवं प्रकाशन, "मित्र-मधुर"पत्रिका में कविताओं का चुनाव। सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश। आजीविका - कार्यकारी अधिकारी, लोकसभा सचिवालय, संसद भवन, नई दिल्ली पता- B 302 तीसरी मंजिल सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट मुखर्जी नगर नई दिल्ली-110009 ईमेल : salilmumtaz@gmail.com