कविता

उदासी से परे

चाहे जिंदगी उदास हो….
उदासी भरा दिन,
उदासी भरी एक लंबी रात हो…
 वही जिंदगी की,
 चक्की पर चलती।
 दिन और रात के कामों की,
 हर दिन की तरह वही लिस्ट हो।
 चाहे! जिंदगी उदास हो…..
 गलियों से गांव…
 गांव से शहर….
 फिर चाहे!!!!
 शहर से जंगल तक उदास हो।
 एक धुंध में पसरी हुई,
 जिंदगी की हर आस  उदास हो।
 सुनना खामोशियों के शोर,
 और खुद से बात करना।
  भीड़ का तो…..
  हर इंसान अकेला है।
 फिर किस साथ के लिए उदास हो।
 मिलोगे ना जब तुम खुद से,
 हर तरफ उदासी दिखेगी।
 प्यास…  बाहर नहीं।
 तुझे तेरे भीतर ही मिलेगी।
— प्रीति शर्मा असीम

प्रीति शर्मा असीम

नालागढ़ ,हिमाचल प्रदेश Email- aditichinu80@gmail.com