कथा साहित्यकहानी

क्षति पूर्ति

गीतू ऐसा क्या हो गया हैं?जो नौबत यहाँ तक पहुँच गई है। मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी,तुम्हारे साथ ऐसा हो सकता है।पति-पत्नी में कहा- सुनी होना कोई बड़ी बात नहीं है। हर घर में ऐसी स्थिति बन जाती है। इसका मतलब यह नहीं है कि एक-दूसरे को छोड़ने को तैयार हो जाओ।
तुम तो पढ़ी- लिखी हो, फिर तुमने समझदारी से काम क्यों नहीं लिया? पति- पत्नी दोनों को ही कुछ बातों को नकार देना चाहिए। इससे रिश्तों में दरार पड़ने से बच जाती है।माँ कहे जा रही थी।गीतू चुपचाप सुन रही थी।
आखिर कब तक अपने संबंधों में दरार पड़ने से बचाती। मैं तो हमेशा ही सतर्क रहती थी।झगड़े की हर वजह को उसी समय नकार देती थी। ताकि झगड़ा किसी बड़े कलह का कारण ना बन जाए।वह अपनी माँ की इकलौती संतान थी। पिता जी माँ को अकेला छोड़ कर जा चुके थे। किसी नाचने वाली के चक्कर में।जब मै दस वर्ष की हुई थी। पर कुछ- कुछ समझती थी। मम्मी- पापा के झगड़े के बारे में।माँ अक्सर मेरे सोने के बाद पापा से खूब लड़ती थी।उस नाचने वाली को लेकर। क्यों जाते हो उसके पास, ऐसी औरत किसी की नहीं होती? ना ही ये किसी का घर बसा सकती है।
तुम्हारा घर परिवार है, तुम्हें शर्म नहीं आती। तुम्हारी बेटी बड़ी हो रही है। उसे पता चलेगा तो वह क्या सोचेगी? उसके बाप ने एक नाचने वाली के चक्कर में अपना घर- परिवार बर्बाद कर दिया। क्या असर पड़ेगा उसके बाल मन पर?पिता जी सब कुछ सुन कर भी चुप रहे।
गीतू मन ही मन परेशान थी।क्यों उसने मनीष से सब कुछ छिपाया? उसे विवाह से पहले भी मम्मी- पापा के संबंध- विच्छेद के बारे में बता देना चाहिए था। अब वह इस बात पर अड़ गया है कि वह उसके साथ नहीं रह सकता। शादी से पहले माँ ने  मनीष तो यही बताया था। बेटा गीतू के पापा नहीं रहे, कार दुर्घटना में उनकी मौत हो गई थी।मैंने माँ को बहुत समझाया था कि पापा के बारे में झूठ ना कहे। वह बहुत  संवेदनशील है।उसे झूठ बर्दाश्त नहीं होता।पर माँ ने मुझें चुप रहने को कह दिया था।
मुझें हमेशा डर रहता था जिस दिन भी मनीष को सच्चाई का पता चल जाएगा।मेरी जिंदगी में तूफान आ जाएगा।माँ का अपना ही तर्क था, तुम्हें क्या लगता है? अगर मनीष को सच्चाई बता दी कि तुम्हारा पिता एक अय्याश था,तो क्या वह तुम्हें अपना लेगा? इसलिए इस बात को भूल जाओ। अपने भविष्य के लिए।उस समय मुझें भी लगा था, माँ ठीक कह रही हैं।
पर अब जाकर अहसास हो रहा है कि काश उस दिन मैं माँ की बात नकार देती तो यह दिन ना देखना पड़ता।मनीष को पता नहीं किस तरह पता चल गया था,मेरे अतीत के बारे में। उसी दिन से उसका व्यवहार पूरी तरह बदल गया था। बात- बात पर मुझें नीचा दिखाता था।उसे हर बात में  मेरा ही दोष नजर आता था। खुलकर कुछ भी कहने से वह बच रहा था।शुरू में तो मुझें लगा यह सब चिड़चिड़ापन उसके काम के दबाव के कारण है। उस अक्सर ऑफिस के काम का प्रेशर महसूस करता था। पर इतना चिड़चिड़ापन।
पहले तो वह मुझें प्यार करता थकता नहीं था।उसे लूडो खेलने का बहुत शौक था। उसमें भी यहीं शर्त रखता था।मैं जीता तो जो मैं कहूंगा तुम्हें वही करना होगा।मैं उसकी सारी चाल समझती थी। मैं शर्म से लाल हो जाती थी।मैं तो उससे हमेशा हार जाना चाहती थी। उसकी खुशी ही मेरे लिए सब कुछ थी। मैं उसे हर हाल में खुश देखना चाहती थी।इसलिए जानबूझ कर हार जाती थीं।हार कर भी उसकी हर जिद पूरी करना चाहती थी।औरत का जीवन ही समर्पण है।औरत ही जीवन में हर बार समर्पण करती है, यही औरत की नियति है।
एक बार मनीष ने पूछा था,गीतू सच बताना आदमी अधिक प्यार करता है या औरत।मनीष ये कैसा सवाल है?दोनों ही प्यार करते हैं। नहीं अधिक प्यार कौन करता है?वह अपनी जिदद पर अड़ गया था। मन में आया था उसका मन रखने के लिए कह दूँ, आदमी! पर मुझें यह सही नहीं लग रहा था। मैं मन ही मन खुद को तर्क  की कसौटी पर कस रही थी।मनीष को उत्तर चाहिए था,वह भी अभी। साथ ही यह भी कह रहा था,मेरा मन रखने के लिए झूठ मत बोलना। तुम वही कहना गीतू जो तुम्हारी नजर में सही हो।
मेरी नजर में औरत अधिक प्यार करती है। औरत का दूसरा रूप ही प्यार हैं।औरत ही प्यार की मूरत है।औरत में ही प्यार कूट-कूट कर भरा होता है। औरत एक ही समय में अपने सभी रिश्तों पर प्यार बरसा सकती है। उसका प्यार कम या ज्यादा नहीं होता। चाहे प्यार पति के प्रति हो, भाई के प्रति या बेटे के प्रति। मेरा मत तो यही है।मनीष बोला, बोलती जाओ।मैं और भी जानना चाहता हूँ। क्या मैं कोई ज्ञानी-ध्यानी हूँ?मैंने तुनक कर कहा था,पर वह मानने को तैयार नहीं था।औरत के चार रूप होते हैं,समझें!
वह हँस पड़ा!बस अब ज्यादा रोमांटिक होने की जरूरत नहीं है,मनीष।पर वह कहाँ मानने वाला था?मैं उसके प्यार भरें मनुहार के आगे नतमस्तक हो गई थी।अच्छा सुनो,जब औरत लाड़-प्यार करती हैं,तो वह माँ का रूप होती हैं।जब औरत आप को समझाती हैं तो वही औरत एक बहन का रूप होती है। जब बिस्तर पर आपको प्यार देती है तो वही औरत पत्नी होती हैं। और जब औरत नखरे करती, जिद्द करके आपको मजबूर करती है तो वही औरत बेटी का रूप होती है।
वाह-वाह कहकर उसने मुझें गले से लगा लिया था। मनीष को मुझसे चिपकने का बहाना चाहिए था।सही कहा है किसी ज्ञानी ने जहाँ बहुत खुशियाँ होती है,वहाँ दुख भी मुँह खोले  खड़ा रहता है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।
गीतू क्या मैं तुम्हारे लिए चाय बना हूँ?मैं वर्तमान में लौट आई। नहीं, माँ आज मेरा सिर दर्द से फटा जा रहा है।कोई बात नहीं, मैं सिर दर्द की गोली लाकर देती हूँ।मैं फिर मनीष की यादों में खो गई।उसकी जिदद, उसका प्यार सभी कुछ मुझें अच्छा लगता था। मेरी आँखे मेरे बस में नहीं थी।बड़ी मुश्किल से आँखो को बहने से रोक पाई थी।
गीतू,गोली खा ले सिर दर्द कुछ हल्का हो जाएगा।पर माँ मन का दर्द।चुपचाप गोली गटक ली।चाय की प्याली सामने पड़ी थी।चाय में से उठ रही गरम-गरम भाँप मेरे मन के दर्द को बढ़ा रही थी।माँ मेरे सिर को सहला रही थी।सब ठीक हो जाएगा गीतू। मनीष तुम्हें नहीं छोड़ सकता।वह तुम्हें बहुत प्यार करता है।अभी गुस्से में है,जब ठंडे दिमाग से सोचेगा तो तुम्हें लेने चला आएगा।
ठण्डे दिमाग से,माँ क्या आपने पापा को छोड़ते समय सोचा था ठन्डे दिन से?आप उस दिन गुस्से से उबल रही थी। शायद वही आखरी दिन पापा के साथ आपका। उस दिन आपने पापा की एक भी बात नहीं सुनी थी। बस आप यहीं चाहती थी कि पापा घर छोड़कर चले जाए, हमेशा-हमेशा के लिए। पापा ने कितना कहा था, आज के बाद वह कभी भी उस नाचने वाली के पास नहीं जाएंगे। पापा कितना गिड़गिड़ा रहे थे आपके सामने।पर आप टस से मस नहीं हुई थी।माँ आप इतनी कठोर कैसे हो सकती हो?
बेटी, मैं कठोर नहीं थी। मैंने कई बार तुम्हारे पापा को समझाया था कि उस नाचने वाली को छोड़ दे। पर उनका तो वही हाल था जैसे एक बच्चा गलती करता है फिर माफी माँगता है अगले दिन फिर वहीं गलती करता है।तेरे पापा भी रोज मुझसे माफी माँग लेते थे।फिर उसी रखैल के पास पहुँच जाते थे। वह सुधरना नहीं चाहते थे।गीतू, तुम्हें पता है ना एक औरत सब कुछ बर्दाश्त कर सकती है पर,पर क्या माँ, आप चुप क्यों हो गई? पर सौतन नहीं, तेरे पापा ने उसे मेरा स्थान दिया था। जो मुझसे सहन नहीं हो रहा था।बार-बार माफी माँग लेते हैं फिर वही गलती कर देते थे। अब तुम ही बताओ अगर तुम मेरी जगह होती तो क्या करती?
मैं आपकी जगह होती तो उस नाचने वाली से एक बार जरूर मिलती।मेरी बात बीच में काट दी थी,माँ ने। मिली थी उस नाचने वाली से,वह नाच गाकर जरूर पेट भर रही थी।पर वह बहुत सलीकेदार औरत थी।उसने मुझसे बहुत ही प्यार से बातचीत की थी।उसने यहीं कहा था,आप अपने पति को संभालो,मैं उसे अपने पास नहीं बुलाती हूँ। ना ही यहाँ रहने का आग्रह करती हूँ।वह खुद चला आता है। मैं कई बार उनको कह चुकी हूँ, तुम्हारा घर- बार है फिर यहाँ क्यों आते हो?फिर वह चुप हो गई थी। मैंने उसे आवेश में आकर कहा था,पर मेरे जीवन में जो क्षति तुम्हारे कारण हो रही है।तुमनें मेरा पूरा जीवन नष्ट कर दिया है। तुम्हें इसकी सजा अवश्य मिलेगी। मैं बोलती जा रही थी, पर उसने उफ्फ तक नहीं की।मेरी किसी बात प्रतिकार ही किया। मैं उठ कर चली आई थीं,गुस्से में।
उसके बाद मैंने कभी उस तरफ मुड़ कर नहीं देखा।उसी रात मैंने तुम्हारे पापा को छोड़ दिया था हमेशा-हमेशा के लिए। मेरे जीवन में जो क्षति हुई थी उसकी पूर्ति नहीं हो सकती। पर मैं तुम्हारे जीवन को नष्ट नहीं होने दूंगी, चाहे इसमें मेरा सारा जीवन खत्म हो जाए। पर तुम्हें क्षति नहीं होने दूंगी। मैं कल ही मनीष से मिलूंगी।माँ क्या मैं भी तुम्हारे साथ चल सकती हूँ? हाँ,जरूर चलना,पर चुप रहना की शर्त पर। चाहे मनीष आवेश में आकर कितना भी भला- बुरा क्यों ना कहें? क्योंकि वह सच्चाई से पूरी तरह अनभिज्ञ है। तुम उसकी किसी बात का प्रतिकार नहीं करना।बोलों तुम्हें मंजूर है।ठीक है माँ।
मम्मी ने डोर बेल बजाई। दरवाजा मनीष ने ही खोला।उसने हमें अंदर आने के लिए कहा। घर में सब कुछ अस्त-व्यस्त था। मैं अपने ही घर को अजनबी की तरह देख रही थी। क्या यह वही घर था जिसे मैंने प्यार से सहेज कर रखा था। पर अब सब कुछ उजड़ चुका था।माँ ने मुझें भी बैठने का इशारा किया। मैं मनीष को देख रही थी।उसका ध्यान मेरी तरफ बिल्कुल नहीं था।
माँ बोलना शुरू किया, बेटा गीतू के पापा जीवित है। मैंने ही उन्हें छोड़ दिया था।क्योंकि वह एक नाचने वाली पर मोहित थे। उन्होंने मेरे प्यार को क्षति पहुंचाई थी। क्या तुम यह स्वीकार कर सकते हो कि एक औरत अपने पति को किसी के साथ बाँट सकती है? बोलो, नहीं मम्मी, मनीष का जवाब संक्षिप्त सा था,तो मैं कैसे सहन कर सकती थी? उस क्षति के कारण मैं हारा हुआ महसूस कर रही थी।जहाँ तक तुमसे सारी बात छुपाने का सवाल था।मुझें नहीं लगता था तुम्हारे जैसा समझदार, नेक- दिल आदमी इस छोटी सी बात से इतना विचलित हो जाएगा। पर तुमने बिना पूरी सच्चाई जाने ही गीतू को घर बिठा दिया।मुझें समझ नहीं आ रहा हैं कि तुम्हारी नजर में,मैं दोषी हूँ या मेरी बेटी।इसमें गीतू का कोई कसूर नहीं है।अगर मैं एक घटिया आदमी को छोड़ सकती हूँ तो क्या अपनी बेटी, जिसका इसमें कोई कसूर नहीं है उसके जीवन में इतनी बड़ी क्षति कैसे होने दे सकती हूँ? मनीष, मम्मी आप यह सब कुछ मुझें पहले ही बता सकती थी। और गीतू भी कुछ बताने को तैयार नहीं थी। पति- पत्नी में कोई पर्दा नहीं होता,मुझें झूठ पसंद नहीं है।
बेटा,अब यह बताओ। मैंने जो कदम उठाया वह गलत था, तुम्हारी नजरों में।क्या एक औरत को स्वेच्छा से जीवन जीने का कोई हक नहीं है? मुझे माफ कर दीजिए, मम्मी! मुझें सच्चाई का पता नहीं था।मैं आपके साथ-साथ गीतू का भी अपराधी हूँ।मैंने आवेश में आकर गीतू की भावनाओं को भी क्षति पहुंचाई है।माँ ने हंसकर कहा,अब तुम्हें ही फैसला करना है कि तुम किस तरह इस क्षति को पूरा करोगें।अच्छा मैं चलती हूँ।मनीष ने मुझें गले लगा लिया।मैंने तुम्हारा दिल दुखाया है मेरी जान,वह आगे कुछ नहीं कह सका।मेरी आँखों से खुशी के आँसू छलक पड़े,चलो मनीष अब करो क्षिति पूर्ति—-।

राकेश कुमार तगाला

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