कथा साहित्यकहानी

लिव-इन

मानवी पिछले कई सप्ताह से घर नहीं आई थी।पहली बार ऐसा हुआ था। नहीं तो उसे हमेशा घर आने की जल्दी लगी रहती थी। रोज फोन पर घण्टों लगी रहती थी। उसे कई बार समझाया था कि अपने शहर में ही कोई अच्छी सी नौकरी ढूंढ ले। सैलरी कम होगी तो भी चलेगा। कम से कम आँखों के सामने तो रहोगी। अपना शहर अपना ही होता है।किसी भी तरह की जरूरत पड़ जाए तो परिवार,आस-पड़ोस सदा साथ आकर खड़े हो जाते हैं।यही तो फायदा है अपनों का
और अपने शहर का।
हमारा शहर छोटा जरूर है, पर हर तरह की सुख- सुविधा है। मेट्रो ट्रेन भी चलती है,और क्या चाहिए?पर मानवी हमेशा कहती हैं माँ महानगरों में ज्यादा संभावना है कैरियर को लेकर। बड़ी- बड़ी कंपनी अच्छा पैकेज देती हैं। हमारे शहर की कंपनियों से पाँच, छह  गुना ज्यादा बड़ा पैकेज।माँ समझा करो जो तरक्की अपने शहर में दस वर्षों में होगी। वह महानगर में दो-तीन वर्षों में हो जाएगी।
वैसे भी मुझें आधुनिकता के साथ तालमेल बिठाना है तभी तरक्की संभव ही पाएगी।पता नहीं वह इतनी महत्वाकांक्षी कैसे हो गई थी? पहले तो ऐसी नहीं थी मेरी मानवी। पर फोन क्यों नहीं उठाती? मैंने सिर्फ इतना ही तो कहा था।अब शादी के बारे में भी विचार कर लो। शुरू में तो मेरी मानवी बहुत सीधी थी। हमेशा किताबों में खोई रहती थीं।जब देखो किताबें- किताबें।और किसी काम में उसकी खास रुचि नहीं थी।
विज्ञान की विधार्थी होने के बावजूद, साहित्य में उसकी गहरी रूचि थी। मैं उसे टोक भी देती थी। मानवी तुम विज्ञान की विद्यार्थी होकर भी सारा दिन साहित्य में खोई रहती हो। नहीं माँ ऐसी कोई बात नहीं है। साहित्य में मेरी रुचि है, पर जीवन में तरक्की करने के लिए विज्ञान की सबसे बेहतर है। विज्ञान की पढ़ाई के बाद अच्छा कैरियर बन जाता है।किसी बड़ी कंपनी में बढ़िया जॉब। उसके बाद कोई टेंशन नहीं। अच्छा-अच्छा पर मुझें तो लगता है कि व्यक्ति को अपनी रूचि के अनुसार ही काम ढूंढना चाहिए।ऐसा नहीं है माँ आज के इस आधुनिक युग में धन- दौलत का बड़ा महत्व है। एक साहित्यकार का जीवन कठिन होता है। उसके पास ज्ञान का भंडार होता है। और धन के नाम पर कहते-कहते वह चुप हो गई।
वह मन ही मन सोच रही थी कि हमारे समय में तो ज्ञान ही सब कुछ होता था। क्या जमाना आ गया है?माँ वक्त बदल गया है। और हमें भी वक्त के साथ बदल जाना चाहिए।वरना इस भौतिकवादी संसार की दौड़ में पिछड़ जाएंगे। और एक बार पिछड़ गए तो फिर शायद और अवसर ना मिले। ठीक है बंद करो अपना भौतिक पुराण। मानवी के पापा भी हमेशा उसका ही पक्ष लेते थे। उन्हें अपनी बेटी पर बड़ा गर्व था।वह उसकी सोच से  बहुत प्रभावित थे।वह भी कहते रहते थे हमें वक्त के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहिए। वरना हम पिछड़ जाएंगे।मैं चुप रह जाती बाप- बेटी की इस आधुनिकता की दौड़ को सुन कर।
मेरा साहित्य प्रेम घर में किसी से छिपा नहीं था। मैं हमेशा मानती थी कि साहित्य इंसान का अंदरूनी विकास करता है। उच्च- नीच का भेद सिखाता है। साहित्य से इंसान भावुक जरूर हो जाता है, उसमें दया-भावना भर जाती हैं।यही तो जरूरी है मानवता के लिए। अगर इंसान में भावुकता, संवेदनशीलता का समावेश नहीं होगा तो वह मशीन बन जाएगा,मानव कहाँ रहेगा?मानवी और उसके पापा मुझसे सहमत नहीं थे।वो तो भावुकता को तरक्की में सबसे बड़ी बाधा मानते थे। वह कहते थे आज के इस युग में भावुकता का स्थान नहीं है।भावुक आदमी हमेशा धोखा ही खाता है। लोग उसका इस्तेमाल करते हैं।उन्होंने भावुक इंसान को कमजोर करार दे दिया था।मैं अपना- सा मुँह लेकर रह जाती थी। खैर जो भी मत हो उनका, मुझे फर्क नहीं पड़ता था। हर इंसान का जिंदगी जीने का अलग- अलग ढंग है।मेरी सोच उनसे अलग थी।
महानगरीय जीवन में सब कुछ तेजी से बदलता है।वहाँ पर तो लड़का- लड़की बिना शादी के ही साथ रहते हैं लिव-इन रिलेशनशिप में।मुझें नहीं पसंद है, बिना शादी के पति-पत्नी की तरह रहना। कुछ साल इकट्ठे रहो और फिर यह कहकर अलग हो जाओ हमारे विचार नहीं मिलते।क्या तीन-चार साल ऐसे ही, मुझे तो शर्म आती थी इस लिव-इन रिलेशनशिप के बारे में सोचकर।इस लिव-इन ने तो शादी- ब्याह का मतलब ही बदल कर रख दिया था। असल में यह बिना शादी के अपनी शारीरिक तथा मानसिक इच्छाओं की पूर्ति मात्र है।मानवी भी वहाँ किसी लड़के के साथ रहती हैं। कमरा शेयर कर रखा है।मैंने तो साफ-साफ कह दिया था। अपना ताम-झाम अलग कर लो उस लड़के से। कहीं तुम भी तो पर मैं चुप हो गई थी। जवान- बच्चों को कुछ कहना भी तो सही नहीं होता आज कल।
एक हमारा जमाना था माँ-बाप हाथ तक चला देते थे। और मजाल है हम पलटकर तर्क- वितर्क करें सके। और अब जमाना बदल गया है। आज कल के  बच्चों को मारना, ना बाबा ना। एक दिन कपड़े पहनने को लेकर कुछ कह बैठी थी।सारा घर सिर पर उठा लिया था,मानवी ने। उसने दो-तीन दिन तक  खाना भी नहीं खाया था। कई दिनों तक मुझसे बात भी नहीं की थी।पापा को समझाने पर ही मानी थी।क्या यह मेरी ही औलाद है मैं मन ही मन कह उठी थी?
उस दिन पड़ोस वाली मिसेज चटर्जी कह रही थी।महानगर में लड़कियाँ बड़ी तेज होती हैं। अपनी मन-मर्जी करती हैं।देर रात तक सिनेमा दिखती है।पार्टियाँ करती हैं कोई शर्म-हया नहीं होती उन्हें।कोई एतराज नहीं करता। माता-पिता को हर महीने मोटी रकम भिजवा देती है।वे भी खुश रहते हैं।उसकी बातें मुझें कांटे की तरह चुभ रही थी।क्या सारी लड़कियाँ ऐसी ही होती है मिसेज चटर्जी?
नहीं-नहीं आप मेरी बात को अन्यथा ना लें। अधिकतर लड़कियाँ ऐसी ही हो जाती है।मै मन ही मन कह रहीं थी, कहीं मेरी मानवी भटक न हो जाए उस चकाचौंध में। महानगर की जिंदगी बड़ी रंगीन होती है। हम फ़िल्मों में देखते आजादी के नाम पर कैसे अय्याशी करते हैं बच्चें? पिछले दिनों ही तो मैंने एक फिल्म देखी थी। जब एक लड़का- लड़की लिव-इन रहते थे। फिर वे अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाए थे और फिर एक- दूसरे पर आरोपों का सिलसिला चल पड़ता था। हीरो उसमें दोष निकालता है। तुम तो पहले भी पता नहीं किस-किस के साथ मुँह काला करती थी। हीरोइन भी पीछे नहीं रहती दोषारोपण करने में। अंत में संबंध- विच्छेद और कहानी खत्म।
क्या सही है, क्या गलत है? किसने गलत किया, किसका कसूर था? आजकल की नई पीढ़ी सोच-सोच कर मेरा मन परेशान हो उठा था।
सुबह ही मानवी का फोन आया था। आज मैं आ रही हूँ, माँ। एक-दो दिन रुक जाऊंगी। अमन भी मेरे साथ हैं, माँ।अमन मैंने हैरान होते हुए पूछा,माँ आपको बताया तो था वह मेरे रूम-मेट हैं।पतिदेव भी आज गुस्से में थे। क्या वह अलग रूम लेकर नहीं रह सकती थी? मानवी के आने की खुशी इतनी नहीं थी।जितनी चिंता सता रही थी कि जवान बेटी किसी अनजान के साथ रहती है। मानवी को देखकर हम हैरान रह गए। मॉडर्न ड्रेस जींस- टॉप, बाल भी कटवा लिए थे उसने। उसे देखकर मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर था। पर साथ आए मेहमान को देखकर सारा गुस्सा पी गई थीं।अमन ने हम दोनों के पैरों को हाथ लगाया। मैंने उसे कोई आशीर्वाद नहीं दिया। सिर्फ सिर पर हाथ रख दिया।माँ बड़ी भूख लगी है। नाश्ता लगवा दो,मानवी ने ऑर्डर देते हुए कहा।
नाश्ते की मेज पर मेरा ध्यान अमन पर ही ठहरा था। वह भी मुझें नोटिस कर रहा था। वह सहज नहीं लग रहा था। शायद उसने भी भाँप लिया था कि उसके आने से मैं खुश नहीं थी। मानवी खाने में मगन थी। वह हाथ हिला- हिला कर अपने पापा से बात कर रही थी।मानवी ने मेरी तरफ देखा तो उसने कहना शुरू किया,माँ अमन जी महाविद्यालय में प्रोफ़ेसर है हिंदी के। साहित्य में विशेष रूचि के कारण ही इन्होंने पीएचडी की। मैंने बीच में टोक दिया तो हॉस्टल में क्यों नहीं रहते? माँ इन्हें हॉस्टल का माहौल पसंद नहीं था,क्यों नहीं? फिर मुझें लगा कुछ गलत कह दिया मैंने। अपने शब्दों को सुधारने का प्रयास किया।पर बेटा हॉस्टल का वातावरण तो बेहद शांत होता है।
मानवी, इस बार तुम काफी दिनों बाद घर आई हो।मानवी हाँ, माँ मैं कुछ दिन अमन के घर रह कर आई हूँ।इनका परिवार बड़ा ही साधारण है। बंगाल के दूर-दराज के एक कस्बे में रहता है।इनका परिवार बड़ा ही शांत और साधारण है।मुझें इनका परिवार बहुत पसंद आया हैं।
माँ मैं अमन से शादी करना चाहती हूँ। हम पिछले दो सालों से लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं। सुनकर मुझें अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। मेरी भोली- भाली मानवी का यह रूप। क्या तुम लिव-इन में रह रही हो दो-तीन सालों से? तुम्हें शर्म नहीं आई।अब यहाँ क्या लेने आई हो,चलो जाओ यहाँ से। मानवी अपनी जगह से टस से मस नहीं हुई।बस उसने इतना ही कहा,माँ मैंने ऐसा क्या गलत कर दिया? अगर मैं आपको बिना बताए शादी कर लेती।तुमने शादी तो कर ही ली है।क्या मैं समझती नहीं लिव-इन का,क्या मतलब होता है?मुझें सब पता है, कैसे लड़के-लड़कियाँ अपनी अधूरी इच्छाओं को पूरा करने के लिए लिव-इन में रहते हैं। और जब कोई रास्ता नहीं मिलता तो शादी कर लेते हैं। अब बोलने की बारी मानवी की थी।
वह बड़ी सहज लग रही थी।माँ, लिव-इन का मतलब यह नहीं हैं,जो तुम समझ रही हो। सभी के लिए इसका अर्थ अलग-अलग हो सकता है। मैं लिव-इन में सिर्फ इसलिए रह रही थी कि अमन को ठीक से समझ सकूं और वह मुझें। हमें  एक- दूसरे की अच्छाई और बुराई का ज्ञान हो।ताकि हम अपने रिश्ते को सही से चला सके। दो-तीन साल साथ गुजारने का मतलब यह नहीं है कि हमने अपने संस्कारों की धज्जियां उड़ा दी हैं।
माँ, पता नहीं आपने कहाँ से यह आधी-अधूरी बात सुन ली
?लिव-इन के बारे में।लिव-इन का मतलब हमारे लिए सिर्फ इतना ही था कि हम साथ रहकर एक दूसरे को भली-भांति समझ सके।मुझें नहीं लगता ऐसा करके मैंने किसी तरह अपने परिवार को ठेस पहुंचाई है।अब आप लोगों की इच्छा  है।अमन अब चुप नहीं रह सका।माँ,जी! मानवी ने जो कुछ कहा सही था। यही सारी बातें मैंने अपने परिवार के सामने रख दी थी।और पूरा परिवार मुझसे सहमत था।उन्हें मानवी पसंद है।
पर मानवी की पहली शर्त थी कि जब तक उसका परिवार इस संबंध के लिए सहमत नहीं होगा,वह कोई कदम नहीं उठा सकती। अब आप ही फैसला कर लो। मानवी के पापा बेटी की समझदारी पर मन ही मन मुस्कुरा रहे थे।और उन्होंने  फैसला मुझ पर छोड़ दिया।। मैं भी मन ही मन खुश थीं इस लिव-इन रिलेशनशिप से।लिव-इन में रहकर अगर दो लोग एक दूसरे को अच्छी तरह परख लेते हैं तो इससे बढ़िया क्या बात है?उन्हें अपने जीवन की शुरुआत से पहले ही पता होता है। एक- दूसरे की कमी- घाटियों के बारे में। उसने मानवी का हाथ अमन के हाथ में थमा दिया।हम तुम्हारे रिश्ते से सहमत हैं।मैं लिव-इन का सही मतलब आज ही समझी थी। और बड़बड़ा रही थी,लिव-इन,लिव-इन।

राकेश कुमार तगाला

1006/13 ए,महावीर कॉलोनी पानीपत-132103 हरियाणा Whatsapp no 7206316638 E-mail: tagala269@gmail.com