लघुकथा

गंदा खून

एक युवा मच्छर खिड़की की फटी हुई जाली से कमरे में घुसने के प्रयास में घायल हो गया । आननफानन उसके साथी मच्छरों ने उसे अस्पताल में भर्ती कराया ।
ऑपेरशन के लिए उसे खून चढ़ाना होगा यह पता चलते ही एक अन्य युवा मच्छर बोला ,” डॉक्टर साहब ! आप ऑपेरशन की तैयारी कीजिये ,मैं अभी आया !”
उसे टोकते हुए उस घायल मच्छर का वृद्ध पिता बोला,” कहाँ से लाओगे इतनी जल्दी खून ? “
” कुकुरमुत्तों की तरह फैली इन गंदी बस्तियों में इंसानों की कमी कहाँ है ? अभी उनके जिस्म से भर ले आता हूँ जरूरत भर का खून ! ” युवा मच्छर आत्मविश्वास से बोला ।
” ठहरो !” अचानक वह वृद्ध मच्छर दहाड़ उठा ,” अपने कुकृत्यों से जानवरों को भी शर्मसार करने वाले नराधम , जाति पांति व धर्म मजहब के साथ ही जमीन के टुकड़ों के लिए लड़ने वाले वहशी दरिंदों के गंदे खून से नहीं देनी मुझे अपने बेटे को जिंदगी ! “

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

One thought on “गंदा खून

  • ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"

    आदरणीय राजकुमार जी आप ने प्रतिक रूप से बहुत ही मारक लघुकथा कही हैं. हार्दिक बधाई आप को इस बेहतरीन लघुकथा के लिए.

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