मुक्तक/दोहा

दोहे

जग का पूरा कर सफ़र,होना तय प्रस्थान।
बंदे जीना पर यहां,जी भर यह ले ठान।।

लाएगा अंतिम सफ़र,जब आएगा काल।
पर जी लें यदि ज़िन्दगी,ना हो तनिक मलाल।।

रहना जग में कुुछ दिनों,यह ना सदा निवास।
कुछ पल रहकर है गमन,रहे यही अहसास।।

मौत अचानक ही चढ़े,इसका रखना ध्यान।
फिर निश्चित,अंतिम सफ़र,वक़्त बहुत बलवान।।

करुणा लेकर जी यहाँ,परहित रखना ताव।
अंत सफ़र पर जब चलो,हो संतोषी भाव।।

सुख के सब साथी यहाँ,दुख में बस दो-एक।
इसीलिए तू मौत के,पहले ही बन नेक।।

मानव का अंतिम सफ़र,मंज़िल है शमशान।
जीना है मुश्किल यहाँ,पर मरना आसान।।

सफ़र आख़िरी काम इक,है सबका उपकार।
तेरे अपने दो क़दम,चलना समझें भार।।

सुख-वैभव में लिप्त हो,भूल न तू इनसान।
परमधाम करना तुझे,है इक दिन प्रस्थान।।

सबसे हिल-मिल रह यहाँ, करना ना अभिमान।
सफ़र आख़िरी का सदा, करना तू सम्मान।।

कोरोना या अन्य कुछ,कारण है बेमान।
जाना है तो जायगी,इक दिन तेरी जान।।

जिसको कहते आख़िरी,सफ़र बड़ा बलवान।
दे देता है मुक्ति वह,हो मुश्किल आसान।।

— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com