कविता

हिमालय या हौसला

ये हमारी सोच दर्शाता है,
हमारा हौसला
हिमालय से भी टकरा जाता है।
ये सच है हिमालय बड़ा ही नहीं
बहुत बड़ा है,
पर हमारे हौसले के सामने
नतमस्तक होकर खड़ा है।
हमारे हौसले के आगे
वह भी झुक गया है,
हमारे हौसले को देख
अपना अस्तित्व ही भूल गया है।
हमारे हौंसले को
हिमालय भी झुका नहीं सकता,
वो लाख चाहे भी तो
हमारे हौसले के सामने
कभी टिक नहीं सकता।
माना की उसका
आकार बड़ा है,
पर हमारे हौसले के पहाड़ के आगे
हिमालय भी नहीं ठहर सकता।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921