कविता

सर्द फिजा

सर्द हवा
नीला आसमां
खुली छत
सूरज सर ऊपर
कपकपाती देह
तपिश सूरज की क्षी्ण
सर्दी और गरमी के बीच
छिड़ी हुई है जंग
कभी दिखे खुद की छाया
हो जाए कभी लुप्त
अंधेरा छटेगा
उजाला होगा
आखिर में जीतेगा
उजाला ही
हार होगी अंधेरे की

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020