गीतिका/ग़ज़ल

बदलते दौर में

बदलते दौर में खुद का महत्व बनाये रखना,
दांतों के बीच जीभ सा, जरूरत जताये रखना।
छोड़ देना कुछ व्यस्न, और पुरानी आदतों को,
उम्र का दौर चौथा, निज अहमियत बताये रखना।
काम आऊं मैं किसी के, कुछ हुनर हो पास में,
बुढ़ापे में प्रिय बनूं, मधुर व्यवहार अपनाये रखना।
“मैं और मेरे” में खुश, परिवार जब दिखने लगे,
परिवार का हिस्सा बनूं, अहसास कराये रखना।
न कभी हो धन की लालसा, जीभ पर नियंत्रण रहे,
जरूरतों को सिमित रख, संयम अपनाये रखना।
कुछ कदम बच्चों के मुताबिक, अगर चलने पड़ें,
मुस्कराकर नयी राह पर, कदम बढाये रखना।
— अ कीर्ति वर्द्धन