स्वास्थ्य

वमन या कुंजल

पानी पीकर मुँह से निकाल देने की क्रिया को कुंजर कहा जाता है। (कुछ लोग इसे कुंजर कहते हैं।) यह क्रिया एनीमा की पूरक क्रिया है। एनीमा से बड़ी आँतों और गुदा की सफाई होती है, तो कुंजल क्रिया से आमाशय और छोटी आँतों की सफाई हो जाती है। जब किसी कारणवश अपचन हो गयी हो या उल्टी के कारण बेचैनी अनुभव हो रही हो, तो यह क्रिया कर लेनी चाहिए। इससे तुरन्त आराम मिलता है।

सामान्य स्वस्थ व्यक्ति भी यदि सप्ताह में एक बार यह क्रिया कर ले, तो बहुत लाभ होता है। इस क्रिया से आँखों और दाँतों को भी काफी लाभ होता है। यदि कभी फूड पाॅइजनिंग हो जाये या कोई जहरीला पदार्थ खा लिया हो, तो तत्काल यह क्रिया कर लेनी चाहिए। सामान्यतया यह क्रिया प्रातः खाली पेट शौच के बाद ही करनी चाहिए और यदि एनीमा लेना हो, तो वह भी पहले ही ले लेना चाहिए।

कुंजल करने के लिए एक छोटे भगौने में एक-डेढ़ लीटर गुनगुना पेय जल लीजिए। उसमें बहुत थोड़ा-सा सैंधा या सादा नमक मिला लीजिए। अब कागासन में अर्थात् दोनों पंजों के बल बैठकर किसी गिलास से उस पानी को गटागट पीते जाइये। तीन, चार, पाँच… जितने गिलास पानी आप पी सकें, पी जाइये। जब पानी और न पिया जाये तथा उल्टी होने लगे, तो रुक जाइये।

अब बाथरूम में या खुले मैदान में किनारे पर जाकर सीधे खड़े हो जाइये और कमर से आगे की ओर झुक जाइये। फिर बायें हाथ से पेट को हल्का सा दबाते हुए दायें हाथ की बीच की तीनों उँगलियों को मिलाकर गले में डालिए और गले के काग को हिलाइए। इससे उल्टी होने लगेगी। जब तक पानी निकले तब तक निकलने दीजिए। पानी निकलना रुक जाने पर फिर उँगलियों से काग को हिलाइए। इस प्रकार बार-बार करते हुए सारा पानी निकाल दीजिए। यदि अन्त में काफी खट्टा पानी निकल रहा हो, तो दो गिलास पानी और पीकर फिर से कुंजल करना चाहिए। यदि थोड़ा-बहुत पानी पेट में छूट भी गया हो, तो चिन्ता न करें, वह पेशाब के रूप में अपने आप निकल जाएगा।

कुंजल क्रिया करने के बाद ठंडी हवा में नहीं निकलना चाहिए और न तत्काल स्नान करना चाहिए। सबसे अच्छा यह है कि कुंजल के बाद थोड़ा आराम करें या चादर ओढ़कर लेट जायें। कुंजल के बाद कम से कम एक घंटे तक कुछ भी खाना-पीना नहीं चाहिए।

सावधानी- अम्लता (एसिडिटी) के रोगियों को कुंजल के लिए गुनगुने के बजाय सादा पानी लेना चाहिए और नमक भी नहीं मिलाना चाहिए।

— डाॅ विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com