कवितापद्य साहित्य

नये साल में नया संकल्प

यूँ हीं नहीं बदलता साल अपनी ओढ़नी,
छिपे होते कई पैग़ाम उसमें हमारे लिए,
धीरे से आकर कान में है वह बुदबुदाता,
लो एक साल और कम हो लिया तुम्हारे जीवन का।

उठ मानव! न व्यर्थ गँवा अपना जीवन,
कुछ अनूठा काम कर दिखा जीवन में ऐसा,
ताकि मरने के बाद भी लोंगों के मस्तक पटल पर,
विराजमान हों तुम्हारी मधुर स्मृतियाँ।

हे मानव! निकल बाहर रोज़मर्रा की ज़िंदगी से,
क्या? बस नया साल मुबारक हो! कहने मात्र से ही,
हो जाता नया साल मुबारक हमारे लिए,
नहीं! यह तो सिर्फ़ अपने मन का वहम है।

अब भी समय है जाग जा हे मानव! निकल,
इससे आगे निकल और ले द्रण संकल्प नया,
फिर चाहे कितनी रूकावटें आयें मार्ग में तेरे,
न पस्त होना बस आगे बढ़ते रहना, बस आगे बढ़ते रहना।

हे मानव उठ और बदल दे नए साल में अपनी ओढ़नी,
जैसे बदल देता साल हर साल अपनी ओढ़नी,
नया जीवन, नई ओढ़नी, नए संकल्प लिये,
चलो और बेहतर करें अपना आगे आने वाला जीवन।

नए साल में, नये संकल्प के साथ,
आप सभी को नए साल की,
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

मौलिक रचना
नूतन गर्ग (दिल्ली)








*नूतन गर्ग

दिल्ली निवासी एक मध्यम वर्गीय परिवार से। शिक्षा एम ०ए ,बी०एड०: प्रथम श्रेणी में, लेखन का शौक