इतिहास

27 दिसंबर बने “बाल दिवस”

दिसंबर माह सनातन धर्म व सिक्ख पंथ के लिए बलिदानों का माह रहा है, धर्म की रक्षा के लिए लड़ने वाले गुरु गोविंद सिंह के पूरे परिवार व गुरु पुत्रों के ऐतिहासिक बलिदान को स्मरण करने का अवसर है। जानें क्या हुआ इस एक सप्ताह में दिनों में–

21 दिसंबर :  सन 1704 के मई महीने में आनंदपुर साहिब की आखिरी लड़ाई लड़ी गई बहुत समय तक युद्घ होता रहा। सरहद के सूबेदार वजीर खां भी फौज लेकर पहुंच गया था। मुगल फौज ने 6 महीने आनंदपुर साहिब को घेरे में रखा किले में भोजन समाप्त हो गया। अंत में 1704 दिसंबर 6-7 पोष की मध्यरात्रि को श्री गुरु गोविंद सिंह ने परिवार सहित श्री आनंद पुर साहिब का किला छोड़ा। शत्रु सेना के बार बार आक्रमण से इन्हें अपना किला छोड़ना पड़ा। क्योंकि किले में रहकर युद्ध करना अब संभव नही था।

22 दिसंबर : गुरु साहिब अपने दोनों बड़े पुत्रों सहित चमकौर के मैदान में पहुंचे। वह युद्ध जिसके उदाहरण हम सदियों तक दे सकेंगे। गुरु साहिब की माता और छोटे दोनों बेटों को एक भेदी की सूचना पर गिरफ्तार कर लिया गया। चमकौर के युद्ध में दुश्मनों से जूझते हुए गुरु साहिब के बड़े पुत्र अजीत सिंह उम्र महज 17 वर्ष और छोटे बेटा जुझार सिंह उम्र महज 14 वर्ष अपने 11 अन्य साथियों सहित धर्म व संस्कृति की रक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हो गए।

23 दिसंबर : गुरु साहिब की माता गुजर कौर और दोनों छोटे बेटे जोरावर सिंह (8 वर्ष) और फतेह सिंह (6 वर्ष) के गहने एवं अन्य सामान गंगू ने चुरा लिया और तीनों को मुखबरी कर मोरिंडा के चौधरी गनी खान और मनी खान के हाथों गिरफ्तार करवा दिया। इधर चमकौर में भीषण युद्ध में अजित सिंह व जुझार सिंह के अद्भुत शौर्य व पराक्रम पूर्ण युद्ध कौशल दिखाया। परन्तु 40 जवानों का सिक्ख दस्ता 10 लाख की फ़ौज से कब तक लड़ता। एक के एक बाद सभी वीरों के बलिदान के बाद गुरु साहिब को अन्य साथियों की बात मानते हुए चमकौर छोड़ना पड़ा।

24 दिसंबर : माता गुजर कौर व दोनों भाइयों को सरहिंद पहुंचाया गया और वहा ठंडे बुर्ज में नजरबंद किया गया। दिसंबर की भयंकर ठंड में यह किला किसी नर्क से कम नही था। यह किला पूरे वर्ष ठंडा रहता। कैदियों को प्रताड़ना के लिए ही इस किले में लाया जाता था। इसी किले में गुरु गोविंद सिंह के परिवार को बिना कोई गर्म कपड़ा या बिस्तर के ठिठुरने को छोड़ दिया गया।

25 और 26 दिसंबर : छोटे पुत्र को नवाब वजीर खान की अदालत में पेश किया गया और उन्हें धर्म परिवर्तन करने के लिए लालच दिया गया। डराया गया, धमकाया गया। इस्लाम न स्वीकारने पर शीश काट देने तक कि धमकी दी गई। परन्तु वे वीर गुरु गोविंद सिंह के पुत्र भला किसी से क्या डरने वाले थे।

27 दिसंबर : इस्लाम न स्वीकारने पर जोरावर सिंह और फतेह सिंह को जिंदा दीवार में चिनवा दिया गया। बाद में गला रेत कर शहीद कर दिया गया। यह खबर सुन माता गुजर कौर ने भी प्राण त्याग दिए। वीर गुरु पुत्रों के बलिदान के कारण 27 दिसंबर को ही बाल दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए। ताकि भारत की आने वाली पीढ़ी को भी बलिदानों के इस प्रतिमान को जानने और संस्कृति की रक्षा के लिए सज्ज रहने की प्रेरणा मिले।

— मंगलेश सोनी

*मंगलेश सोनी

युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश