लघुकथा

‘हाड़… हाड़’

”आप जैसे विचार करेंगे वैसे आप हो जाएंगे,
अगर अपने आप को निर्बल मानेंगे तो आप निर्बल बन जाएंगे,
और यदि आप अपने को समर्थ मानेंगे तो आप समर्थ बन जाएंगे.”

उसने पढ़ा और खुद को समर्थ बनाने के लिए डर को भगाने का संकल्प उसके मन में उमड़ा. उसने खुद से कहा.

”डर एक ऐसा संवेग है जो किसी को भी निर्बल बनाकर पराजित कर सकता है.”

नेपोलियन बोनापार्ट की डिक्शनरी में असंभव शब्द नहीं था, लेकिन डर ने उसको भी डरा-हरा दिया.

नेपोलियन और डर? जी हां. नेपोलियन को बिल्ली से डर लगता था. उसका यह डर सबके सामने जाहिर हो गया था. जिस युद्ध में नेपोलियन हारा, उसका जो दुश्मन था नेल्सन, वो सत्तर बिल्लियाँ अपनी फ़ौज के सामने बाँधके ले आया था. जैसे ही नेपोलियन ने बिल्लियाँ देखीं, उसके हाथ–पैर कांप गए. और उसने अपने बगल के सैनिक को कहा, “आज जीत मुश्किल है.” और वो पहली हार थी उसकी, उसके पहले वो कभी नहीं हारा. इतनी छोटी-सी बात, इतना परिणाम ला सकती है! भला डर छोटी-सी बात कैसे हो सकती है!

डर तो कोरोना से भी लग रहा है! नवंबर 2019 में आया था कोरोना, इसलिए कोविड-19 कहलाया. एक साल से अधिक समय हो गया. अब तो 2020 भी खिसकने को है, लेकिन यह डरने, कम होने, भागने का नाम ही नहीं ले रहा! ऊपर से कोरोना को लेकर बिल गेट्स ने चेताया- बेहद बुरे हो सकते हैं अगले 4 से 6 महीने. डर के ऊपर डर!

वह डरेगी नहीं, उसने तय किया.

कोरोना को भगाने के लिए वह ‘हाड़… हाड़’ करने लगी.

‘हाड़… हाड़’ यानी वही देसी तरकीब, जिससे पहले भी टाइगर को भगाया जाता था, आज भी भगाया जाता है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “‘हाड़… हाड़’

  • लीला तिवानी

    ‘हाड़… हाड़’ एक तरह से ‘हट… हट’ का देसी रूप है. वैसे तो डर के कारण मुख से यह ‘हाड़… हाड़’ खुद ही निकल जाता है, पर ‘हाड़… हाड़’ कठोर शब्द है. इससे चीता, शेर-आदि डर जाते हैं. ‘हाड़… हाड़’ की आवाज को टाइगर भगाने की देसी तरकीब के रूप में प्रयोग करने का यही कारण है. ‘हाड़… हाड़’ में ‘ड़… ड़’ कठोर शब्द माना जाता है. प्रायः कविता में कठोर शब्दों का प्रयोग वर्जित माना जाता है. जिस कविता में युद्ध का वर्णन होता है, वहां कठोर शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है. यहां ‘हाड़… हाड़’ का अर्थ कोरोना को डराने से लिया गया है. यह कोरोना है जनाब! कहां डरता है? यह तो रूप बदल-बदलकर आ रहा है. अब कोविड-20 का रूप लेकर आया है. फिर भी हमको ‘हाड़… हाड़’ यानी भागो-भागो कहने की हिम्मत जारी रखनी है.

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