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विचार विमर्श- 9

इस शृंखला के इस भाग में कुछ विचार होंगे और उन पर हमारा विमर्श होगा. आप भी कामेंट्स में अपनी राय लिख सकते हैं-

1.क्या मौत के बाद भी रिश्ते नहीं मरते हैं?

रिश्ते तो जीवित रखने से ही जीवित रहते हैं, उनका जीने-मरने से कोई संबंध नहीं होता है.
”टूट जाता है गरीबी में वो रिश्ता जो खास होता है,
हजारों यार बनते हैं, जब पैसा पास होता है.”
मन हो तो रिश्ते जीवित रहते हैं. कुछ रिश्ते हम बनाते हैं, कुछ ईश्वर बनाता है. अपने माता-पिता को हम स्वयं नहीं चुन सकते हैं. यह रिश्ता ईश्वरीय होता है. इसी तरह भाई-बहिन का रिश्ता भी होता है. ये रिश्ते कभी नहीं बदल सकते, मरने के बाद भी जीवित रहते हैं. इसमें इच्छा-अनिच्छा का प्रश्न ही नहीं उठता है. सामाजिक प्राणी होने के कारण रिश्तों को बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है. हमें विवेक से काम लेकर उपयोगी रिश्तों को जीवित बनाए रखना होगा. सड़ी उंगली को काट फेंकने में ही भलाई होती है, इसी तरह रिश्तों में भी हमें चयन करना पड़ता है. ध्यान रहे रिश्तों को तोड़ना भी पड़े तो ऐसे तोड़ें, कि फिर से जोड़ने की आवश्यकता पड़े तो परेशानी न हो. कोशिश तो यही करनी चाहिए, कि मरने के बाद भी रिश्ते जीवित रह सकें.
”रिश्ते चाहे कितने ही बुरे हों, उन्हें तोड़ना मत,
क्योंकि पानी चाहे कितना भी गंदा हो,
अगर प्यास नहीं बुझा सकता,
वो आग तो बुझा ही सकता है.”

 

2.सफलता के लिए सहनशीलता क्यों जरूरी है?

सफलता और सहनशीलता का चोली-दामन का साथ है. अगर यह कहा जाए कि ”सहनशीलता ही सफलता की सीढ़ी है” तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. सहनशीलता मनुष्य का आभूषण है. सभी काम अपने समय से ही होते हैं-
”धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय.”
सहनशीलता के अभाव में व्यक्ति में क्रोध पैदा होता है और क्रोध को मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु माना गया है. क्रोधी व्यक्ति अक्सर अपना ही नुकसान कर बैठता है. क्रोध में उसे कोई नया विकल्प दिखाई-सुझाई नहीं देता. सहनशीलता से मनुष्य शांतचित रहकर सफलता के अनेक रास्तों में से कोई रास्ता चुनकर सफलता पा सकता है.,
”सहनशीलता के दरवाजे बंद,
तो सफलता का मार्ग अवरुद्ध.”

3.क्या मध्यप्रदेश की तरह हर राज्य में लव जिहाद का कानून बनना चाहिए?

मध्यप्रदेश राज्य में सबसे पहले लव जिहाद का कानून बनाने की पहल की गई है. लव जिहाद यानी जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराना और फिर विवाह करना. जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराने से पीड़ित को मानसिक और शारीरिक पीड़ा से तो पीड़ित होना पड़ता ही है, साथ ही देश-समाज का नैतिक पतन भी होता है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए ही मध्यप्रदेश राज्य ने सबसे पहले लव जिहाद का कानून बनाने की पहल की है. ध्यान रखने योग्य बात है कि इस कानून में ‘लव जिहाद’ शब्द को रखना तर्कसंगत व कानूनसम्मत होगा या नहीं, अभी इस पर भी विचार किया जा रहा है. नए कानून में शादी करने या धर्म परिवर्तन पर रोक नहीं है. नया कानून लालच देकर, जबरदस्ती से, बहला-फुसलाकर, डरा-धमकाकर, फ्रॉड या झूठ बोलकर शादी करने के खिलाफ है. इस कानून में धर्म परिवर्तन करने के लिए कलेक्टर से पहले इजाजत लेने को जरूरी किया जा रहा है. पहले ऐसा नहीं था. इसके अतिरिक्त पहले यह अपराध जमानती था, सजा का प्रावधान भी सख्त नहीं था. नए कानून में थाने की बजाय कोर्ट से ही जमानत मिल पाएगी. सजा भी सख्त और जुर्माना अधिक होगा. अब उत्तर प्रदेश में भी यह कानून बनाने पर काम शुरू हो चुका है, जबकि हरियाणा में इस पर विचार चल रहा है. अन्य राज्यों में अभी पुराने कानून ही हैं. वहां भी मांग उठ रही है. पीड़ित व उसके परिवार को मानसिक और शारीरिक पीड़ा से मुक्ति दिलाने के लिए यह आवश्यक भी लग रहा है,

4.क्या अब रिश्ते अकेलेपन की ओर चल पड़े हैं?

अकेलापन एक ऐसी भावना है जिसमें लोग बहुत तीव्रता से खालीपन और एकांत का अनुभव करते हैं. पहले यह अकेलापन व्यक्तिगत होता था, अब लगता है, कि रिश्ते अकेलेपन की ओर चल पड़े हैं. पहले परिवार में अनेक बच्चों का होना समृद्धि का द्योतक माना जाता था. फिर ‘हम दो हमारे दो’ का चलन हुआ. अब तो आंगन में एक ही फूल की रीत चल पड़ी है. इस कारण चाचा-ताऊ, बुआ-मौसी आदि के रिश्ते विलुप्त होने लग गए हैं. इधर महिलाओं के नौकरीपेशा होने के कारण अपनी सुविधा और मनमर्जी से चलने के लिए बेटा-बहू अकेला रहना पसंद करने लग गए हैं और माता-पिता अकेले रहने को विवश हो जाते हैं. कहीं-कहीं माता-पिता बेटे-बहू की व्यस्तता या खुदगर्जी के चलते समुचित समय न दे पाने के कारण सबके साथ रहते हुए भी अकेलापन महसूस करने लग जाते हैं. ऐसा भी देखा गया है कि माता-पिता ‘ओल्ड एज होम’ में रहना पसंद करने लग गए हैं, क्योंकि उन्हें वहां अपनी उम्र के लोगों का साथ मिल जाता है. अकेलापन तो अकेलापन ही होता है, खलता ही रहता है. हम पहले ही कह चुके हैं, कि अकेलापन एक ऐसी भावना है जिसमें लोग बहुत तीव्रता से खालीपन और एकांत का अनुभव करते हैं. अकेलेपन से तनाव तो होता ही है, कई बार आत्महत्या के कदम भी उठ जाते हैं. कोरोना और लॉकडाउन ने अकेलेपन की समस्या से कुछ हद तक निजात दिलाई है. लोग परिवार के साथ रहकर खुश रहने का महत्त्व जान गए हैं. अकेलापन विश्वास की कमी के करण भी हो रहा है. सोशल मीडिया से जुड़े रहकर भी विश्वास की कमी के कारण रिश्ते उथले हो गए हैं. आपसी विश्वास बढ़ाकर अकेलेपन को दूर किया जा सकता है. रिश्तों में अकेलेपन को दूर करना ही होगा, अन्यथा जीना ही मुश्किल हो जाएगा.
अकेलापन तब अनुभव होता है जब हम यह भूल जाते हैं,
कि परमात्मा हमारे सबसे निकट हैं और हमारे परम मित्र हैं.

मन-मंथन करते रहना अत्यंत आवश्यक है. कृपया अपने संक्षिप्त व संतुलित विचार संयमित भाषा में प्रकट करें.

ब्लॉग संख्या- 2798

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “विचार विमर्श- 9

  • लीला तिवानी

    रख लो दुआओं की चादर संग ,
    दुख छूमंतर हो जाएंगे ,
    खुशियां बिखेरते चलो जहान में ,
    बैरी कम होते चले जाएंगे।

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