गीत/नवगीत

बेवफा से वफ़ा करते हैं

बेवफा से वफ़ा करते हैं
हम न जाने ये क्यों करते हैं
बेवफा से वफ़ा करते हैं …..
शमा जलती है तो परवानों का क्या
नहीं समझा ये कोई पहेली है क्या
जिंदगी दाँव पे क्यों लगाते हैं ये
यूँ ही जल जल कर ये मरते हैं
बेवफा से वफ़ा करते हैं …..
हुस्न मगरूर है इश्क मजबूर है
पास होकर भी अब वो बहुत दूर है
ना बताते हैं वो के खता क्या हुई
खामोशी से सितम वो करते हैं
बेवफा से वफ़ा करते हैं ….
कभी रूठना नहीं ,कहते थे हमें
खुद ही रूठे और छोड़ बैठे हैं हमें
तेरे बिन जीना तो कोई जीना नहीं
हर घड़ी हर पल हम मरते हैं
बेवफा से वफ़ा करते हैं …..
हम नहीं जो भूला दें तुम्हें ऐ दिलरुबा
तुम ही तो हो मेरी जां मेरी महबूबा
तुम न लौटोगी इसका है तुमको यकीं
फिर भी हम इंतजार करते हैं .
बेवफा से वफ़ा करते हैं ….
कब तलक ना तुम समझोगी मेरी वफ़ा
चाहे कर लो तुम मुझपर भले ही जफ़ा
दिल है टूटा पर हिम्मत है टूटी नहीं
तुमसे मिलने की आस अभी छूटी नहीं
दिल से तेरी फिक्र करते हैं
बेवफा से वफ़ा करते हैं …..
तुमसे मिलने की आशा में जिंदा हैं हम
जिंदगी में नहीं है कोई और गम
मेरी साँसों में तू है समाई हुई
इक तू ही तो है इस मन को भाई हुई
जब तलक साँस है तू मेरे पास है
दिल में तेरा दीदार करते हैं
बेवफा से वफ़ा करते हैं ……

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।