लघुकथा

बेघर

मीना और अजय  अपने घर- बार छोड़ कर प्रदेश कमाने आये थे|दोनों पति-पत्नी ईट के भट्टे मे काम किया करता  था |दोनों की सोच थी हम मिलकर काम करेंगे और रूपये को इकट्ठा कर अपना एक अच्छा मकान बनाएंगे |इस आशा से मिना और अजय दिलों जान से काम किया करता था |ईट भट्टे के जो मालिक थे भानु  सिन्हा |वो कड़वी आवाज़ मे मजदूरों से  बात किया करता था, यहाँ तक की मीना और अजय  की कई महीनों की तनख्वाह नहीं दिया था |आस-पड़ोस के कुछ मजदूर तो भानु सिन्हा से कह देता -“मालिक अब हमार रूपये दे दो अब हम अपना घर जावेंगे “|लेकिन मालिक किसी की नहीं सुनता था और कहता -अच्छा मिल जाएगी तुम लोगों की तनख्वाह |इस तरह वो हर रोज मजदूरों की बाते टाल देताथा
मजदूरों को यह आशा रहती थी की हमें एक ठोर रूपये मिलेंगे यह  उम्मीद से मीना और अजय खुश रहते थे ताकि मकान बनाने मे काफ़ी सहारा मिल जाएगी |
एक दिन की बात थी मिना की तबियत ख़राब हो गई इस वजह से वो काम पर नहीं गई अजय  अकेले काम पर गया, उस दिन भानु सिन्हा देखता है की सारे मजदूर है सिवाय मीना के, तो वो अजय  से पूछता है की आज मीना क्यों नहीं आई? मालिक के मुँह से शराब की बदबू आ रही थी, लाल-लाल आँखे, मानो वो गुस्से मे हो | रोज-रोज मालिक की बाते सुनकर तंग आ गया था क्योंकि अजय  की तनख्वाह जो  नहीं मिला था, आज उसने हिम्मत जुटा कर मालिक से कह दिया -“मीना की तबियत ख़राब थी और वो काहे को आवेगी काम पर आप तो तनख्वाह देत नहीं “|इतना सुनते मालिक की आँखे गुस्से से  लाल हो गई उस दिन तो  उसने अजय  के साथ मार पीट कर ली यहाँ तक की अजय का सिर फट गया, जाते वक्त भानु सिन्हा  कह जाता है की तुम्हें अब कोई तनख्वाह नहीं मिलेगी तुम यहाँ से अभी के अभी दफा हो जाओ इतना कहकर वो चला जाता है |अजय रोते हुए उस झोपड़ी पर आता है जहां उसकी मीना सोये रहती है |मीना को सोते देख कर अजय सोचता है हम उसे इन झगड़ो के बारे मे नहीं बताएँगे, यह सोच वह मीना के पास बैठ कर रोने लगता है की हमारी किस्मत ही फूटी है |कुछ पल बाद ज़ब मीना की आँखे खुली तो वह देखती है की अजय के सिर से खून टपक रहा था उसने अजय  से बिना कोई सवाल किये उनकी महरम पट्टी करती है और बाद मे पूछती है क्या हुआ? जो आप आक्रोश की भांति नजर आ रहे है |अजय आंशू की धार से कहता है की हम कल सवेरे अपन गाव चले जायेंगे  उसने सारी बात मीना को बताया |उसी रात दोनों ने अपना पोटली बांधा और सवेरे होते वो निकल पड़े अपने गाव  के लिए |लेकिन जाते वक्त मीना अपनी भीगी पलकों से अजय  को कहती है की  -“अपन घर की सुखी रोटी, परदेश के पकवानो से अच्छी होत है “|अजय कहता है ठीक कहा तुमने मीना हमारा मकान बनाने का सपना अधूरा रह गया |दोनों रोते बिलखते हुए वहाँ से चल पड़े |
 — राज कुमारी

राज कुमारी

गोड्डा, झारखण्ड