कविता

मुझे समझौता ही रहने दो……

मुझे समझौता ही रहने दो……
जिंदगी में ,
बहुत बड़े -बड़े खवाब तो नही देखें।
मेरी आँखों में ,
छोटे- छोटे गूंगे ,सपने तो रहने दो।।
मुझे समझौता ही रहने दो……..
जिंदगी से ,
मैंने सौदे तो नही कियें।
सच का सामना करने के लिए,
मुखौटे भी नही लिए।।
मेरा सच,
मेरे साथ रहने दो।
मुझे समझौता ही रहने दो…….
जिंदगी से,प्यार  किया।
छल  तो नही किया।।
शब्दों की सलाखों को,
मेरे दिल के आर-पार ही रहने दो।
मुझे समझौता ही रहने दो………
शिकवे और शिकायतों पर,
अब न वक्त जाया कर।
शिकायतें सब मेरी,
मेरे साथ रहने दो।
मुझे समझौता ही रहने दो……..
मैं किसी का ,
अपना कहाँ हो पाया।
पराया था,
पराया ही रह गया।
मुझे अपना तो…रहने दो।
मुझे समझौता ही रहने दो…….
देख लिया चेहरा दुनिया का,
मकसदों और सियासतों का है।
मेरा चेहरा,
बस मेरा ही रहने दो।
मुझे समझौता ही रहने दो।
मुझे समझौता ही रहने दो।।
स्वरचित रचना
— प्रीति शर्मा “असीम”

प्रीति शर्मा असीम

नालागढ़ ,हिमाचल प्रदेश Email- aditichinu80@gmail.com