लघुकथा

लघुकथा – अर्धांगिनी

” सुनंदा!ओ सुनंदा !पानी ही डालती रहोगी या भोजन भी परोसोगी।” आंगन में तुलसी के पौधों को पानी डाल जब सुनंदा पीछे की ओर मुड़ी तो उसे अपने पति की वही झल्लाहट भरी आवाज सुनाई पड़ी।

सुनंदा एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की अकेली लड़की थी । वह कम पढ़ी- लिखी सांवली सूरत वाली थी । सुनंदा अपने मां-बाप की इकलौती लाडली होने के साथ ही घर की मालकिन भी थी । मा पापा ने उसकी शादी एक रईस खानदान में तय कर दी। रामचंद्र के बडा बेटा कमल इस शादी के लिए राजी नहीं था। उसकी शादी मां-बाप के दबाव और धन के लालच में तय हो गई। कुछ दिनों बाद दोनों की शादी बड़े ही धूमधाम से सम्पन्न हुई।

कमल पर सुनंदा के घर से प्राप्त धन दौलत उसके दिलो-दिमाग पर इस कदर हावी हो गया कि उसे अपने अच्छे बुरे का तनिक भी ध्यान नहीं रहता। उन पैसों से दिन रात अपने दोस्तों के साथ डिस्को पार्टी आदि करता । उसे उन सारी बुरी आदतों की लत लग गई जो एक आम रईसजादों में होती है। पर सुनंदा अपने पति के इन आदतों को देखते हुए भी चुप रहती । वह कर भी क्या सकती थी? जब सारी परिस्थितियां ही उसके प्रतिकूल हो ।घरवालों के अत्याचार और दबाव से डरी सहमी सुनंदा घर में ही पड़ी रहती।

सुनंदा अपने पति को खुश देख उसे समझाने की प्रयत्न करती “तुम्हारे ये दोस्त बस तुम्हारी दौलत के साथी हैं धन के समाप्त हो जाने पर वे भी तुम्हारा साथ छोड़ देंगे।”

पर कमल कहां इन बातों पर ध्यान देने वाला था। सुनंदा की इन बातों पर व क्रोधित हो उठता। “मैं चाहे जहां जाऊं जो करूं तुम इसमें दखल देने वाली होती कौन हो”

इसी तरह समय व्यतीत होता गया। कमल शराब के नशे में डूबता गया। उसका स्वास्थ्य इतना खराब रहने लगा कि वह ठीक से चल भी नहीं पता था । एक बार कमल ऐसा बीमार पड़ा कि वह 2 महीने तक बिस्तर से नहीं उठा ।दिन प्रतिदिन उसकी हालत बिगड़ती गई । उसे शहर के नामी हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया डॉक्टर ने रिपोर्ट में कहा कि “कमल को कैंसर हो गया है”।

कमल के इस बीमारी को जान सुनंदा अंदर ही अंदर घुटती रहती । उसे अपने पति के स्वास्थ्य की चिंता सताती रहती । कमल की बीमारी की खबर सुनकर उसका कोई भी मित्र उससे मिलने नहीं आए। सभी उस से दूरी बनाने लगे।

सुनंदा अपने दिलों जान से रात दिन अपने पति की सेवा करती ।अपने खाने-पीने की चिंता ना कर दिन रात अपने पति के पास बैठी रहती। उसकी इस दिन रात की सेवा से कमल कुछ ही महीनों में ठीक हो गया। वह अपनी पत्नी की सेवा भाव को देखकर पश्चाताप का आंसू बहाता। उसे एहसास हो गया कि उसके मित्र बस अच्छे दिन के ही साथी थे । सुनंदा उसके जीवन भर की साथी है वह सुनंदा से कहता- ” सुनंदा मुझे माफ कर दो, मुझे एहसास हो गया कि तुम ही मेरी अर्धांगिनी हो ,मेरे जीवन भर की साथी”।

— अनुपमा, अनु

अनुपमा,अनु

भोजपुर,बिहार