सामाजिक

खुद पर खुद शासन करो

क्या शारीरिक अत्याचार ही घरेलू हिंसा कहलाता है ? मानसिक प्रताड़ना का क्या? लगता है कुछ स्त्रियाँ प्रताड़ना सहने के लिए ही पैदा हुई होती है, ऐसी स्त्रियों को पता भी नहीं होता घरेलू हिंसा और प्रताड़ना के बहुत सारे प्रकार होते है। शारीरिक अत्याचार को ही हिंसा समझने वाली स्त्रियों को मौखिक अत्याचार, लैंगिक अत्याचार और आर्थिक अत्याचारों के बारे में जानकारी ही नहीं होती। नांहि  स्त्रियों के हक में कायदे कानून के बारे में पता होता है। कोई कोई स्त्रीयाँ तो स्वीकार कर लेती है आधिपत्य भाव की पति है तो उसका हक बनता है हमारे साथ अत्याचार करने का।
साथ ही जरूरी नहीं की शादी के बाद पति जो अत्याचार करे उसे ही घरेलू हिंसा मानी जाए। पिता या बड़े भाई द्वारा  लड़की को पढ़ने से रोकना, पहनावे पर रोकटोक करना, बाहर आने जाने पर रोक लगाना या उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ शादी करवा देना भी प्रताड़ना का ही हिस्सा कहलाता है। लड़की जात सहने का भाव लेकर ही पैदा होती है।
पत्नी को बात-बात पर कम अक्कल कहना, ताने मारना, दोस्तों-रिश्तेदारों के सामने ज़लिल करना और बेइज़्जती के साथ लात, थप्पड़ या घूसा मारना हिंसा ही है और धमकी देना या घर से निकाल देना अत्याचार ही है।
कई मर्द शादी के बाद पत्नी को अपना पालतू प्राणी समझकर हर तरह के अत्याचार करते रहते है। पत्नी का किसी दूसरे मर्द के साथ हंस कर बात करने पर या दोस्ती रखने पर मना करना या गलत इल्ज़ाम लगाकर हाथ उठाना औरत के आत्मसम्मान की हिंसा ही हुई।
दूसरा आर्थिक रुप से पति पर निर्भर औरतों को कुछ पति पैसे पैसे के लिए मोहताज रखते है। सारा हिसाब-किताब खुद संभालते पत्नी को खर्च के लिए दिए हुए एक-एक पैसे का हिसाब लेते है और पत्नी कुछ खरीदने की चाह रखती है तो अभी इन्तज़ाम नहीं है कहकर चुप करा देते है ये घरेलू हिंसा नहीं तो क्या हुआ। इसीलिए आजकल के माँ-बाप अपनी लड़कीयों को सबसे पहले पढ़ा लिखाकर अपने पैरों पर खड़ा करते है उसके बाद शादी करते है। कई बार देखा गया है की पत्नी का औधा और पगार पति से बड़ा होता है तो अहं की आड़ में पत्नी की किसी बहाने से नौकरी छुड़वा देते है ये तो सरासर नाइन्साफ़ी ही हुई ना। या तो पत्नी की कमाई  हड़प कर अपने ही खाते में जमा रखना और जरूरत के हिसाब से ही खर्च करने देना भी मानसिक प्रताड़ना का हिस्सा है।
और सबसे बड़ा अत्याचार यौन उत्पीड़न, शादी के बाद कुछ वहशियाना सोच रखने वाले पतियों की नज़र में पत्नी भोगने की वस्तु मात्र होती है। पत्नी की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ संबध बनाना एक तरह का बलात्कार ही कहलाता है। पत्नी की इच्छा विरुद्ध अश्लील फ़िल्में दिखाना, दोस्तों के सामने पत्नी के गुप्तांगों की तारिफ़ करना या दरिंदगी पूर्वक संबध बनाना घरेलू हिंसा ही कहलाती है। इस मामले में भी कुछ स्त्रियाँ शर्म के मारे विद्रोह नहीं कर पाती और कुछ यही समझ लेती है की ये तो शादी की रस्म का एक हिस्सा है पति जो चाहे कर सकता है उसको पूरा हक है।
पति पिता या भाई तो छोड़िए कई बार हम ये भी सुनते है लड़के लड़की के बीच प्रेम संबध में या लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले कपल्स में भी कई बार ब्वॉयफ्रेंड अपनी प्रेमिका के साथ जबरदस्ती करता है, और अधिकार भाव जताते हाथ तक उठा लेता है। और छोटी छोटी बात पर रोक टोक करते प्रताड़ित करता है ऐसे कपड़े मत पहनो, इससे दोस्ती मत रखो इतने बजे घर चली जाओ वगैरह। इन सारे अत्याचारों के ख़िलाफ़ पत्नी पति के विरुद्ध और लड़की पिता भाई या ब्वॉयफ्रेंड के विरुद्ध शिकायत दर्ज़ करा सकती है, और कानूनन इन सारी प्रताड़ना से निजात पा सकती है।
आज भी 40% स्त्रियाँ इन सारे अत्याचारों से गुज़रते, सहते ज़िंदगी काट लेती है। जरूरत है सारे कायदे समझकर खुद को सम्मान देने की। किसीको भी हक नहीं आपकी भावनाओं के साथ खेलने का चाहे पिता हो पति हो भाई हो या ब्वॉयफ्रेंड। स्त्री की खुद की एक पहचान है, रुतबा है और एक स्थान है जिसे सम्मान देना खुद स्त्री के हाथों में है। अत्याचार हिंसा और प्रताड़ना का विरोध दर्शाते खुद को परिवार और समाज में स्थापित करना होगा खुद पर खुद साशन करो किसी और को ये हक कतई मत दो।
— भावना ठाकर

*भावना ठाकर

बेंगलोर