गीत/नवगीत

गीत

सच्चाई की बात निराली,जीवन-सुमन खिलें
अपनेपन से कर्म सँवारो,मंगलगीत मिलें
करुणा का सागर छलकाओ,उर आनंदित होगा
हर इक पल में खुशी मिलेगी,मन उल्लासित होगा
पीर हरोगे यदि औरों की,धन्य करोगे जीवन
चहक उठेगें तन-मन दोनों,महकेगा घर-आँगन
मानव-सेवा,माधव-सेवा,यही धर्म सच्चा है
कर्मकांड में जो है खोया,वह मानव कच्चा है
भौतिकता का मोह त्यागकर,आध्यात्म अपनाओ
झूठ,कपट तज,अंतर्मन को पावन आज बनाओ
बुद्ध बनो,बन जाओ ईसा,टेरेसा-पथ जाओ
महावीर-सा दिव्य बनो तुम,जीवन सफल बनाओ
जाग्रत करके निज विवेक को,मानव आज कहाओ
काल का आना तय पहले से,कुछ तो करके जाओ
भाव जगाओ,नेह बढ़ाओ,ढाई आखर पा लो
अपनेपन की मदिरा पी लो,नेहगान तुम गा लो
नहीं अगर मेरे सीने में,आग जला लो तब तुम
तेरा सीना भी धधकेगा भाव जगा लो तब तुम
यही ज़रूरत है हम सबकी,आग कहीं भी धधके
सीने में जब धधक बढ़ेगी,तब ही दुनिया फदके
आओ हम अब आग जला लें,सही दिशा में पग लें
आग जलेगी,जग बदलेगा,नया जतन मिल कर लें।।
— प्रो.(डॉ)शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com