कविता

हाँ मुझे अभी भी याद है

 खुशियाँ, व उमंगो को लिए चलते
 तनिक बात पर राहगीर हँसते
 साइकिल पर होती हमारी सवारी
 एक पर होते दो-दिन अपनों पर ही भारी
 बीती बातें अपनों में करते फरियाद हैं
 हाँ मुझे अभी भी याद है!!
 बारिश हो या झिलमिलाती धूप
 होठों पर मुस्कान,सदा रहती पेटो  में भूख
 ज्यो ही खाने की घंटी लगती
 गोलगप्पे वाले के पास सहेलियां  की भीड़ लगती
 रहे प्रधानाचार्य हमारे जैसे वह जल्लाद है
 हाँ मुझे अभी भी याद है!!
 पढ़ाई पर जब होती होड़ा-होड़ी
 पहले बेंच पर मैं,होती हमेशा दौड़ा दौड़ी
 ज्ञान सबको एक ही,मिलता ये  शिक्षिका है कहती
 फिर क्यों आपस में तुम लड़कियां हो लड़ती
 सबका एक ही आशीर्वाद रहना, हमेशा आबाद है
हाँ मुझे अभी भी याद है!!
 कैरम बोर्ड पर लड़कों से,छीना झपटी होती
 चुराकर गोटी उनके,अपने को होशियार समझती
 रही यादगार वह बचपन की यादें
 उत्तीर्ण  हो गए सब के सब, ना थी कोई शिकायते
 रही हमेशा प्रेम की भावना, ना दूसरों से निषाद है
हाँ मुझे अभी भी याद है!!
— राज कुमारी

राज कुमारी

गोड्डा, झारखण्ड