लघुकथा

लघुकथा – नालायक कपूत

” शर्मा जी तुम्हारे घर में जब देखो तब लड़ाई-झगड़ा होता रहता है ज़ोर- ज़ोर से चीखने-चिल्लाने की आवाज़ें आती रहती हैं आख़िर यह है क्या ?” पड़ोसी कछवाहा जी ने सवाल किया !
” अरे भाई , मेरी बीवी और माँ की आपस में नहीं बनती ,तो मैं क्या करूं ? ” शर्मा जी ने दुखी मन से कहा ।
” आपको ,शांति बनाये रखने का उपाय खोजना पड़ेगा न । दोनों को समझाइए ।” कछवाहा जी ने सुझाव दिया ।
सदा उदास व दुखी नज़र आने वाले शर्मा जी अगले हफ्ते बड़े खुश दिख रहे थे ,तो कछवाहा जी उनसे इस खुशी का राज़ पूछ बैठे ,तो शर्मा जी अत्यंत उत्साहपूर्वक बोले -“भाई मैंने शांति का उपाय खोज लिया है ।”
“अरे वाह,बधाई हो ।” कछवाहा जी चहक उठे !
” लगता है आपके समझाने का असर सास-बहू दोनों पर हो गया है ? ” कछवाहा जी ने उत्सुकता दिखाई ।
“नहीं जी ,ऐसी बात नहीं है ,बल्कि बीवी के समझाने का असर मुझ पर ज़रूर हो गया है ।”
शर्मा जी ने तड़ से जवाब दिया ।
” क्या मतलब ?” कछवाहा जी से न रहा गया ।
” मतलब यह कि बीवी ने मुझे समझाते हुए कहा कि आप अपनी माँ के साथ तो बचपन से रह रहे हैं ,अब आपको जवानी बीवी के साथ बिताना है,तो बीवी का ही साथ देना पड़ेगा । …….और वैसे भी माँ की ज़िन्दगी लगभग पूरी हो गई है इसलिए अब उनकी वज़ह से आपको मेरी खुशी व अमन- चैन नष्ट नहीं करना चाहिए । ” शर्मा जी ने संवेदनहीन होकर जवाब दिया !
” इसके क्या मायने हुए ?” कछवाहा जी आतुर हो उठे ।
” इसके मायने यह हुए दोस्त कि मैंने तय कर लिया है कि माँ को किसी ‘ओल्ड एज होम ‘ में छोड़ आऊंगा ।” शर्मा जी ने अपने शांति के उपाय का बयान किया ।
” पर ,आपका घर तो आपकी माँ के नाम है ।माँ उसे छोड़ने क्यों तैयार होगी ? “कछवाहा जी ने अपना संदेह प्रकट किया ।
” कभी था,पर अब नहीं । वह तो कब का मैं अपने नाम करा चुका हूं ।” शर्मा जी ने बड़ी बेशर्मी से जवाब दिया ,जिसे सुनकर बचपन में ही अपनी माँ खो चुके कछवाहा जी एकदम उदास हो गए ।उन्हें सहकर्मीरूपी नालायक कपूत से घृणा हो रही थी।

— प्रो. (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com