कविता

कोख की तड़प  

कुछ  छोटे -छोटे  पौधे जो
आंगन  में  उसने  रोपें  थे
जाने कब वो बन गये  पेड़
हिलकर समीर के झोंके से,
उसकी ममता की छाया में
निज तन निहार इठलाते है
अब  उसको  छाया  देते  है
उस पर फल फूल लुटाते है,
सूरज  क़ी  भीषण  गर्मी  से
ज़ब  भी  मुरझा  से जाते थे
उसका पाकर  कोमल स्पर्श
नव जीवन  से  भर  जाते  थे,
नवजात शिशु की भांति ही वो
उन पर निज  स्नेह  लुटाती थी
निज रिक्त कोख की पीड़ा को
वो  भूल  उसी  पल  जाती थी,
जैसा   रिश्ता  माँ   बच्चों  का
वैसा   था   उसका  पौधों  से
पल -पल  टूटी  थी समाज में
सूनी  कोख   के  विरोधों  से।।
— अनामिका लेखिका

अनामिका लेखिका

जन्मतिथि - 19/12/81, शिक्षा - हिंदी से स्नातक, निवास स्थान - जिला बुलंदशहर ( उत्तर प्रदेश), लेखन विधा - कविता, गीत, लेख, साहित्यिक यात्रा - नवोदित रचनाकार, प्रकाशित - युग जागरण,चॉइस टाइम आदि दैनिक पत्रो में प्रकाशित अनेक कविताएं, और लॉक डाउन से संबंधित लेख, और नवतरंग और शालिनी ऑनलाइन पत्रिका में प्रकाशित कविताएं। अपनी ही कविताओं का नियमित काव्यपाठ अपने यूटयूब चैनल अनामिका के सुर पर।, ईमेल - anamikalekhika@gmail.com