कविता

सलवटें

सलवटें जब चादरों में उभर आती है
तो लगता है
रात भर किसी ने
बेचैनी में करवटें बदली है।
सलवटें जब किसी के
कपड़ो में झलक जाती है
तो लगता है
बेचारा दीन-हीन गरीब
जिसकी हालत नहीं बदली है।
सलवटें जब किसी माथे पर
सिमट आती है
तो लगता है
यही उसकी जीवन की कहानी है
जो उसकी जवानी को
बुढ़ापे में बदली है।
— डॉ. शैल चन्द्रा

*डॉ. शैल चन्द्रा

सम्प्रति प्राचार्य, शासकीय उच्च माध्यमिक शाला, टांगापानी, तहसील-नगरी, छत्तीसगढ़ रावण भाठा, नगरी जिला- धमतरी छत्तीसगढ़ मो नम्बर-9977834645 email- shall.chandra17@gmail.com