सामाजिक

नारी शिक्षा

प्राचीन भारत मे महिलाओ के  स्थान समाज मे काफ़ी महत्वपूर्ण था |महिलाएं भी पुरुषो के साथ यज्ञ मे भाग लेती थी, यूद्धाे मे जाती थी व शाशत्रर्य करती थी |धीरे -धीरे महिलाओ का स्थान पुरुषो के बाद निर्धारित किया गया तथा पुरुषो ने महिलाओ के लिए मनमाने नियम बनाए और उनको अपना जीवन बिताने के लिए पिता, पति तथा पुत्र का सहारा लेने की प्रेरणा फैल गई |आज से शताब्दी पूर्व स्त्रियों को अपना पति चुनने की स्वतंत्रता थी पिता स्वयंवर सभाओ का आयोजन करते थे, जिसमे लड़की अपनी इच्छा से अपने पति का वर्ण करती थी |इस प्रकार की सुविधाएं इसलिए दी गई थी, की वे शिक्षित थी और अपना अच्छा, बुरा व सही ढंग से सोचने मे सक्षम थी |मुगलों के शासनकाल मे शिक्षा, कला, साहित्य तथा अन्य विविध गुणों को प्राप्त करने की परिस्थितियां  मिट -सी गई थी |
         अंग्रेजी शासन मे शिक्षा प्रचार-प्रसार तो बढ़ा अपितु जैसी शिक्षा भारत के लिए उपयोगी हो सकती थी, उसे अंग्रेजो ने सुलभ नहीं बनाया |बाबू, क्लर्क और छोटे दर्जे की सेवाओं के लिए उन्होंने अंग्रेजी सीखनी शुरू की तथा जिन परिवारों ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया उनको विशेष सुविधाएं देकर वे अपना शासन चलाने मात्र व्यवसायिक, शिक्षा की शुरुआत की |
    भारत मे स्वतंत्रता आंदोलन ने जोर पकड़ा महिलाओ की शिक्षा के लिए कई स्वदेशी संगठनों ने अपना योगदान देना शुरू किया
ऐसा कहा जाता है की आरंभ मे देश के अन्य क्षेत्रो की तरह यहाँ भी पितृसतातत्मक व्यवस्था थी |मातृवंशात्मक व्यवस्था के पीछे एक ठोस वजह थी, कारण यह था की घर के पुरुष लम्बे समय के लिए युद्ध और शिकार करने के लिए घर से बाहर जाते थे अक़्सर वो लौट कर नहीं आते थे ऐसे मे बच्चे अपनी माँ के पास रहते थे और घर की सारी जिम्मेदारी महिलाओ को निभानी पड़ती थी यह देख कर समाज के बड़े-बुजुर्गो ने सलाह-मशविरा करके निर्णय लिया और संतानो को उनकी माँ के वंश का नाम दिया तब से यह परम्परा आज तक चली आ रही है |नारी को इतना सम्म्मानजनक स्थान देने का उत्कृष्ट उदाहरण और कहाँ मिल सकता है |वास्तव मे इस व्यवस्था मे स्त्रियों को विशेष स्थान प्राप्त है क्योंकि वे उत्पादन एवं प्रजन्न मे बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, उनमे मातृत्व शक्ति है |अपने वंश समहू की प्रेरक होने के कारण महिला को सम्पति का अधिकार प्राप्त है “|
स्त्री और पुरुष मे विभेद नहीं होना चाहिए |विभेद राष्ट्र और समाज को कमजोर करता है |
     “स्त्री और पुरुष एक ही       सिक्के के दो पहलू है
       फिर स्त्री और पुरुष मे विभेद क्यों “?
“देश को बचाने के लिए उसकी अस्मिता को बचाना जरूरी है “|
        अब पुनः नारी को व्यापक तथा समय सापेक्ष बनाने की नितांत आवश्कता है |सरकार 6-14वर्ष के बच्चे के लिए मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा देने को मूल अधिकार मे शामिल कर लिया है |नारी की शिक्षा इस देश के लिए एक महत्वपूर्ण अंग साबित होगा अपितु नारी की शिक्षा मे अपेक्षित स्तर तक सुधार किया जाए |गाँव, समाज, लिंग भेद, जाति-पाती को त्याग कर केवल शिक्षा को स्थान दिया जाए नारियो मे शिक्षा के प्रति अनुराग जगाने के लिए शिक्षा को व्यवस्थोन्मुखी बनाना भी आवश्यक है |
             आज हमारे देश मे शिक्षा का प्रचार हो रहा है नवीनतम आंकड़ो के अनुसार भारत की सम्पूर्ण जनसंख्या का करीब 73%भाग शिक्षित है |
भारत की महिलाओ का 64.6भाग शिक्षित है |
                       यह देखा गया है की हमारे विद्वान ने नारी को  कई तरह से दोषी ठहराया और कहा है की नारियो मे सदैव ही कुछ अवगुण हमेशा ही विद्यमान रहते है |उनमे से गोस्वामी तुलसीदास ने साफ-साफ कहा था की नारी मे आठ अवगुण सदैव रहते है उसमें साहस, चपलता, झूठापन, माया, भय, अविवेक, अपवित्रता और कठोरता खूब भरी होती है |चाहे कोई भी नारी क्यों ना हो पर उन्ही  विद्वानों ने नारी को हमेशा कमजोर और दयनीय ही समझा जाता रहा है |जबकि नारी ने अपने आप को सभी जगह साबित करके दिखाया है |क्यों नारी को अबला का नाम दिया जा रहा है :-“अबला जीवन हाथ तुम्हारी यही कहानी |
आँचल मे है ममता और आँखों मे पानी “|
इसलिए आज के किसी भी प्रगतिशील देश के लिए नारियो का शिक्षित होना आवश्यक है और आज नारी के दम पर आगे बढ़ रही है |आज का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहाँ नारी ने अपना कदम न बढ़ाए हो |यही देश का सच्चा विकास और प्रगति कहा जा सकता है |
इसलिए तो कहा जाता है की
पढ़ेगा भारत और आगे बढ़ेगा भारत………..
— राज कुमारी

राज कुमारी

गोड्डा, झारखण्ड