कविता

/ पशु नहीं हूँ मैं…/

ईंट की तैयारी में मैंने पसीना बहाया है,
दीवार बनाने में मैंने अपनी मांस पेशियां पिघला दी हैं,
छप्पर, प्लास्टरिंग, रंगाई सब कामों में मैंने अपनी शक्ति दी है
आज तुमने इस भवन में भगवान को बिठाया है
मेरा श्रम मंदिर बन गया
लेकिन मैं बाहर का हो गया
मंदिर में मेरा प्रवेश निषेध है
तुम कहते हो कि मैं इसी मूर्ति पूजा का हूँ
इसी धर्म में अंतिम सांस तक रहने की वादा तुम्हारी है
यह कौनसी देवता है कि
मेरे श्रम का शोषण कर
मंदिर से बाहर कर दिया
अमानुषिक छुआछूत का सांप्रदाय मुझपर थोपा है,
कितने बेशर्मी हूँ मैं
तुम्हारी सांप्रदायिक धंधे को मानना
हजारों सालों की यह अवमानना
तोड़ दूँगा मैं तुम्हारे इस संकुचित विचार को
पशु नहीं हूँ मैं तुम्हारे साथ चलने का
चेतना का मनुष्य हूँ मैं
जहाँ मनुष्य की बात है
मानवता की गरिमा है
उसी को मानता हूँ मैं
अनादि के तुम्हारे पाखंडी धर्म से
मुक्त हो जाऊँगा,
स्वधर्म को अपनाऊँगा मैं
मानवीय संघ के साथ चलूँगा।

( आँध्रप्रदेश के कर्नूल जिले के तिम्मापूर में दलितों का बहिष्कार।
मंदिर बनाने का पूरा काम दलितों ने किया था लेकिन उनका मंदिर प्रवेश रोका गया है।
साथ ही उनको गाँव वालों से कोई सहायता न करने का आदेश भी दिया है। )

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।