कविता

मर-मरकर जीना होगा

मर-मरकर जीना होगा
जीने की खातिर हलाहल पीना होगा
अपने-पराये, दोस्त-दुश्मन
सबसे मिलना होगा
हँसना होगा, रोना होगा
मर-मरकर जीना होगा |
तिल-तिल जलना होगा
सूरज सा तपना होगा
घोर निराशा में भी चलना होगा
तिनका – तिनका चुनकर
नीड़ निर्माण करना होगा |
चिंता चिता से बड़ी –
चिंता से बाहर निकलना होगा
भूखा-नंगा रहकर भी हँसना होगा
क्यों लालच की गठरी बांधे
एक दिन मरना होगा
मर-मरकर जीना होगा…
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111