हास्य व्यंग्य

कपड़े और करोना काल

आज जब कपड़ों के लिए wardrobe खोला तो वहां मुझे कुछ भीगा भीगा सा लगा. मैं सोचने लगा कि wardrobe में पानी कहां से आया. तभी मेरी नजर हैंगर पर लटके सूट पर पड़ी और वह गीला पन उसी के कारण था. साथ ही साथ कुछ घुटी घुटी सिसकारी की आवाज भी सूट से अा रही थी. मैं घबड़ा गया. यह क्या? तभी आवाज अाई मुझ पर तरस खाओ मालिक कितने दिन हो गए आपने मेरी तरफ नहीं देखा. सर्द मौसम में ही तो मेरे दिन आते हैं जब आप मुझे पहन के बाहर सजधज निकलते हो. आप रिटायर हो गए हो तो क्या ? मुझे नहीं पहनोगे. पिछले वर्ष भी आप जाड़े में पुणे चले गए थे और मैं यही टंगा टंगा आपका इंतजार करता रहा. आप सारा जाड़ा निकाल कर ही आए. अब भी जाड़ा निकला जा रहा है और मेरी तरफ देख ही नहीं रहे. इतनी बेरुखी. आज तो गणतंत्र दिवस है. आज तो मुझ पर मेहरबानी कर दो. मैंने कहा मेरे दोस्त तुझे पहन कर कहां जाऊं?. वो बोला एक दो घंटे के लिए पहन कर सोसायटी में ही घूम लो. मैं भी तो लटके लटके बोर हो गया हूं ,कुछ तो मुझ पर रहम करो. इतना दीन हीन होकर और दुखी मन के साथ उसने कहा कि मैं उसके निवेदन को ठुकरा नहीं सका और सूट बूट पहन सोसायटी के दो चक्कर मारने को निकल पड़ा.

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020