दस्तक दी दिल पे हल्की सी
फिर तेरी याद ने दस्तक दी दिल पे हल्की सी।।
आँखों की गोद से शबनम रुखों पे ढलकी सी।
यूँ तो अरसा हुआ तेरी गुज़र को देखे हुए।
बात लगती है जैसे आज की सी, कल की सी।
क्या बयानी करूँ मैं मंज़र-ए-रुखसत की भला।
उसके बढ़ते कदम, थी जां मेरी निकलती सी।
ज़िंदगी देखिए न किस मुकाम पर पहुँची।
ये गुज़रती तो है पर लगती नही चलती सी।
फिर तेरी ओर से आई है हवा ले के ‘लहर’।
खुशबुएँ अश्क़ में भीगे हुए आँचल की सी।