गीत/नवगीत

बसंत तुम इठलाना मत

बसंत तुम इठलाना मत
गीत बेसुरे गाना मत ।
तुझसे सजेगी धरती प्यारी
फूल फूल हर क्यारी क्यारी
देख देख स्वयं की शोभा
हम पर रोब जमाना मत ।
भँवरे गुञ्जेंगे तितली नाचेगी
कोयल तेरी गाथा बाँचेगी
सुनकर अपनी प्रशंसा उससे
अपना मुख विचकाना मत ।
सर्दी अब ना सताये तुमको
धूप सहज सहलाये तुमको
हवा के प्यारे झूले से
मस्ती में गिर जाना मत ।
तुम दिखना हर चेहरे पर
गाँव-शहर हर डेरे पर
लुटा देना जो पास है तेरे
तनिक भी बचाना मत ।
तू कवियों का विषय रही
खुशबू वाली मलय रही
संभल के चलना हे ॠतुरानी
विरहन को सताना मत ।
बसंत तुम इठलाना मत ।
— व्यग्र पाण्डे

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,स.मा. (राज.)322201