सामाजिक

नरभक्षी है ये दहेज़ परंपरा

आज चलिये फिर से एक कड़वी सच्चाई या कहें एक कालिख़ जो अभिशाप बन तांडव मचाती हुई सदियों से ग्रहण बन समाज छाई हुई है और आज आधुनिकता मे भी छाई हुई है।ना जाने ये कालिख बन जो ग्रहण बन हमारे समाज मे छाया हुआ है ये दाग कभी मिटेगा भी या नहीं।और इस कालिख का नाम है दहेज़।
सच बहुत बड़ा अभिशाप है दहेज़ जो सदियों से परंपरा संग हमारे देश मे चलता आहरहा है और एसा लगता कि जैसे इस समस्या का कोई भी समाधान बना ही नहीं है।हमारे कानून मे चाहे कितने भी नियम कानून और सज़ा दहेज़ के लोभियों के लिये बन चुके हैं।कितने ही लोगों को इन नियमों का उल्लंघन करनें के लिये अपराधी मान सजा भी दी गई है परंतु फिर भी लोग शादी मे एक मोटी रकम दहेज़ के रुप मे लड़कि वालों से मांग भी लेते हैं।यदि निश्चित राशी के लिये लड़की वाले तैयार हो भी गये तो रिश्ते के लिये हां कर देते हैं।कुछ तो लोग ऐसे होते हैं कि जो सीधे ये बोलते हैं कि आप सब कुछ हमारे लिये नहीं अपनी ही बेटी के सुख के लिये उसे जेवरात, नगदी दे रहे हैं।हम तो आपसे कुछ भी नहीं मांग रहे है।
कुछ लोग तो ऐसे होते जो पहले तो समाज के सामने बेहतरीन छवि दिखाते हुए शादी कर लेते हैं और कुछ वर्षों तक ये बेहतरीन छवि बहुत ही बड़ी मिसाल बन दुनिया के सामने नाम कमाती रहती है।परंतु कुछ वर्षों बाद ही इस बेहतरीन छवि के चेहरे पे लगा मानवता और सच्चाई का नकाब उतरता सा प्रतित होता है।धीरे-धीरे ऐसे लोगों का असली चेहरा दुनिया के सामने आने लगता है कि कैसे ये लोग शराफत के नकाब मे छुपे धूर्त भेड़िये हैं।जो जाल बिछा के चाल खेलते हैं।
एक अबर जो अखबारों मे कुछ समय पहले सुर्खियों मे थी कि एक बहू की हत्या कर उसे स्वयं फांसी के फंदे पर टांग दिया गया और इस वारदात को आत्महत्या का नाम दिया जा रहा था।परंतु उस वारदात को अंज़ाम दहेज के लोभियों द्वारा दिया जा रहा था।सच ऐसे ही ना जाने कितने ही अनगिनत केस है जो हमारे न्यायालय मे चल रहे हैं।आज भी ना जाने कितनी बहुओं की आत्मा ऐसे गुनहगारों को सज़ा मिले ये देखने के लिये तड़प रही है।ऐसे दहेज़ के लोभियों को बहुत ही बुरी सज़ा मिलनी चाहिये।सच मिलती भी है बहुतों को सजा पर फिर भी दूसरे लोग सबक नहीं सीख रहे हैं।बहुत सी बेटियों को तो मार भी दिया जाता परंतु उनके साथ हुई वारदात का तो कानों कान पुलिस को खबर भी ना लग पाती है।
सच एक मां बाप अपने द्वारा सींचे गये फूल बेटी को कितने ही नाज़ों से पालते हैं,अपनी फूल सी बच्ची को फूलों की तरह सहज़ कर संभाल के रखते हैं।उसे एक हल्की सी भी खरौंच आ जाऐ तो खुद ही पीढ़ा का अनुभव सा करते हैं।नाज़ो से पाली हुई अपनी बेटी के भविष्य के बेहतरीन सपनें संज़ोते है साथ ही उसके बड़े होने पर उसके लिये एक सुयोग्य वर की भी तलाश करते हैं।बहुत से अरमान लिये बेटी के सुखी रहने के लिये दिल मे सजा लेते हैं।शादी के लिये एक सुयोग्य वर भी चुन ही लेते हैं उन्हें लगता है कि हमारी बेटी अब खूब सम्मान, प्यार पाके अपनी नयी जिंदगी मे घुलमिल हमें भूल ही जाऐगी।अपनी बेटी की शादी मे कोई भी कसर ना छोड़ते कमीं रहने की।हर पल सर झुकाऐ लड़कियों वालों के सामने खड़े रहते की कहीं से किसी को कोई भी तकलीफ ना हो।बेटी ब्याह के ससुराल भी जाती तो दामाद़ और सभी से विनती करते की हमारी बेटी को सुखी रखना बहुत नाज़ों से पाला है हमनें।बस यही लगता मां बाप को की अब हम निश्चित हो गये हैं।परंतु ये क्या कुछ दिनों मे ही बेटी का फोन आता कि वो प्रताड़ित की जा रही है।उसे दहेज़ के लिये ताने मारे जा रहे।उसे बात-बात पर सबके सामने अपमानित किया जा रहा है।परंतु फिर भी बहुत से मात पिता बेटी को संस्कारों और समाज क्या कहेगा कि दुहाई देते हुए ससुराल के परिवार मे सभी के साथ सामंजस्य बनाने के लिये सीख देते ही रहते।बेटी मां बाप के ढांढस बंधवाने पर खामोशी से ही सामंजस्य बिठाने की सभी के साथ ससुराल मे भरपूर कोशिश करती रहती।कभी लगता बेटी को कि वह सबको खुश करने मे सफल हो ही रही है परंतु वहीं दूसरे पल उसकी हर एक खुशी को पैरों तले कुचल कर उसे जीतेजी ताने मार कर या बेरहमी से पिटकर सताया जाता रहता है।
परंतु समाज के ताने ना सुनने पड़े मां बाप को या मां बाप के ऊपर कहीं बेटी फिर से बोझ ना बन जाऐ ये सोच या तो खामोशी से सब यातनाएं सहती जाती है।या एक दिन थक के हार जाती और खुद को खुद ही खत्म कर लेती।या ससुराल द्वारा ही उसे जला के मार दिया जाता या कोई भी अनहोनी भरी खबर मायके और समाज को भेजी जाती।
अब वो मां बाप सिर्फ़ शर्मिंदा हुए जाते हैं जिन्होंने अपनी लाडो को समाज और इज्ज़त का वासता दे जीतजी मरने के लिये झौंक दिया उस नरक मे जो ससुराल कहलाया।जहाँ से बेटी की चीख,पुकार,मदद् की गुहार भरी आवाज़ उनके कानों मे आज भी गूंज रही।सच ये दहेज़ नरभक्षी परंपरा है ये जानते हुए भी इस नरभक्षी परंपरा का दीपक सदियों से जलता आया है,जल रहा है और ना जाने कितनी सदियों तक जलता ही रहेगा।ना जाने ये नरभक्षी दहेज़ कितनी बेटियों को लील के अपनी भूख मिटाऐगा।जागरूक हो इंसानों इस नरभक्षी दहेज़ की प्रथा को मिल के ही मिटाना है।ना दहेज़ लेना और ना ही दहेज़ देना ये संकल्प उठाना है।समाज मे बेटियों को बड़ा कर पढ़ा के आत्मनिर्भर भी बनाना है।बेटी का विकास समाज का विकास ये सिध्दांत हमें सिध्द कर हर ओर फैलाना है।आओ मिल के इन दहेज़ के लोभियों का खात्मा कर इस नरभक्षी दहेज़ कै भारत वतन से मिटाना है।

— वीना आडवानी

वीना आडवाणी तन्वी

गृहिणी साझा पुस्तक..Parents our life Memory लाकडाऊन के सकारात्मक प्रभाव दर्द-ए शायरा अवार्ड महफिल के सितारे त्रिवेणी काव्य शायरा अवार्ड प्रादेशिक समाचार पत्र 2020 का व्दितीय अवार्ड सर्वश्रेष्ठ रचनाकार अवार्ड भारतीय अखिल साहित्यिक हिन्दी संस्था मे हो रही प्रतियोगिता मे लगातार सात बार प्रथम स्थान प्राप्त।। आदि कई उपलबधियों से सम्मानित

One thought on “नरभक्षी है ये दहेज़ परंपरा

  • यह एक परंपरा रही है। कोई भी परंपरा समय के साथ विकृत हो जाती है। यह भी हो गयी और एक विकृत्त परंपरा का दंश समाज को झेलना पड़ा किन्तु इसका समाधान दहेज को गरियाना नहीं, बेटियों को पैतृक सम्पत्ति में वारिस स्वीकार करना हो सकता है। भाई और बहनों में कानून के अनुसार पैतृक सम्पत्ति में बराबर का बटंवारा होने लगे तो शायद इस परंपरा का अन्त हो सकता है। अन्यथा इसका अन्त नहीं हो सकता।

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