गीत/नवगीत

देवी नहीं, मानवी ही समझो

देवी नहीं, मानवी ही समझो, देवी कहकर बहुत ठगा है।
बेटी, बहिन, पत्नी, माता का, हर पल नर को प्रेम पगा है।।

बेटी बनकर, पिता को पाया।
पिता ने सुत पर प्यार लुटाया।
भाई पर की, प्रेम की वर्षा,
पत्नी बन, पति घर महकाया।
पराया धन कह, दान कर दिया, कैसे समझे? कोई सगा है।
देवी नहीं,  मानवी ही समझो,  देवी कहकर बहुत ठगा है।।

जन्म लिया, घर समझा अपना।
पराया धन  कह, तोड़ा सपना।
पोषण, शिक्षा, भिन्न-भिन्न दी,
फिर भी पिता, भाई था अपना।
मायके में कभी वारिस ना माना, परंपरा विष प्रेम पगा है।
देवी नहीं,  मानवी ही समझो,  देवी कहकर बहुत ठगा है।।

अपना घर, ससुराल में आई।
यहाँ भी समझी गयी पराई।
बात-बात में ताने सुनाकर,
अपने घर से क्या है लाई?
माय के में भी अपना नहीं था, ससुराल भी अपना नहीं लगा है।
देवी नहीं,  मानवी ही समझो,  देवी कहकर बहुत ठगा है।।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)