स्वास्थ्य

धूप स्नान

यह भाप स्नान की वैकल्पिक क्रिया है। जब भाप स्नान के लिए आवश्यक बाॅक्स, कवर या भाप उत्पन्न करने के साधन की व्यवस्था न हो सके, तो उसके स्थान पर धूप स्नान लिया जा सकता है। धूप स्नान से भाप स्नान के सभी लाभ प्राप्त हो जाते हैं।

धूप स्नान किसी छत या बालकनी में ऐसी जगह लेना चाहिए, जहाँ दोपहर को सीधी धूप आती हो। इसका सबसे अच्छा समय दोपहर 12 बजे से 2 बजे के बीच है। धूप स्नान के लिए केवल अधोवस्त्र पहने रहिए। पहले एक गिलास ठंडा पानी पी लीजिए और सिर पर एक कपड़ा तीन-चार तह करके ठंडे पानी में भिगोकर रख लीजिए। अब धूप आने वाली जगह पर चटाई बिछाकर एक कम्बल ओढ़कर बैठिए। कम्बल को इस प्रकार ओढ़ना चाहिए कि पूरा शरीर अच्छी तरह ढक जाए और सांस लेने के लिए मुंह-नाक खुले रहें।

इस तरह धूप में बैठने पर थोड़ी देर में शरीर गर्म हो जाएगा और पसीना आने लगेगा। खूब पसीना आ जाने पर उठ जाना चाहिए। इसके लिए आपको लगभग आधे घंटे तक धूप में बैठने की आवश्यकता हो सकती है। यदि धूप में बैठने पर चक्कर आने लगें, तो तत्काल उठ जाना चाहिए। इसके बाद तुरन्त बाथरूम में जाकर ठंडे जल से स्नान कर लेना चाहिए। गीले कपड़े से रगड़-रगड़कर नहाना चाहिए। साबुन, तेल आदि नहीं लगाने चाहिए।

धूप सेवन

यह भी शरीर को बहुत लाभ पहुँचाने वाली क्रिया है। इससे शरीर में विटामिन डी की उत्पत्ति होती है। गर्मियों में प्रातः 8 से 10 बजे तक और जाड़ों में दोपहर 10 से 2 बजे तक की सुहानी धूप इसके लिए सबसे अधिक उपयुक्त होती है। इसमें शरीर पर कम से कम वस्त्र पहनकर या नंगे बदन धूप की तरफ पीठ करके बैठा जाता है। इसका समय आपकी सुविधा के अनुसार आधे घंटे से लेकर डेढ़ घंटे तक हो सकता है। आप स्नान करके भी धूप सेवन कर सकते हैं या धूप सेवन के बाद स्नान कर सकते हैं।

यदि शरीर में विटामिन डी की बहुत कमी हो, तो धूप सेवन के समय पहले पूरे शरीर पर सरसों के तेल की मालिश करनी चाहिए। फिर उसके बाद आवश्यक समय तक पीठ पर धूप का सेवन करना चाहिए। उसके बाद गीले कपड़े से रगड़कर स्नान करना चाहिए। यह क्रिया सप्ताह में एक बार कर ली जाये, तो शरीर को बहुत लाभ होता है। विटामिन डी की कमी पूरी हो जाती है, त्वचा के रोग दूर होते हैं और हड्डियाँ मजबूत हो जाती हैं। यदि आपके पास धूप सेवन की सुविधा हो, तो अवश्य इसका लाभ उठाना चाहिए।

— डाॅ विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com