कविता

धुंध

जिंदगी के तूफानों से घिरकर जब घबरा जाते हैं
सुकून की एक छोटी सी वजह तलाशते हैं ।
बहुत गुरूर था कभी हमें जिनकी दोस्ती पर
न जाने क्यों आज वही हममें ऐब निकालते हैं ।
नहीं अच्छी लगती अब बच्चों जैसी शरारतें
न दिल को भाता है अब कोई भी मजाक
सारी दुनिया से थककर बस अक्स अपना
न जाने क्यों उनकी आंखों में तलाशते हैं ।
सपनों में भी अपने करीब जानकर दिल को तसल्ली होती है
न जाने क्यों आज वही दूर जाने के बहाने निकालते हैं
कभी तो समझा करो दिल के जज्बात
उनका यूँ मखौल तो उड़ाया न करो
न होंगे गर कल हम तो याद किया करोगे अक्सर
आज के अहसास को न जाने क्यों यूँ ही
मजाक में टालते हैं ।

वर्षा वार्ष्णेय

*वर्षा वार्ष्णेय

पति का नाम –श्री गणेश कुमार वार्ष्णेय शिक्षा –ग्रेजुएशन {साहित्यिक अंग्रेजी ,सामान्य अंग्रेजी ,अर्थशास्त्र ,मनोविज्ञान } पता –संगम बिहार कॉलोनी ,गली न .3 नगला तिकोना रोड अलीगढ़{उत्तर प्रदेश} फ़ोन न .. 8868881051, 8439939877 अन्य – समाचार पत्र और किताबों में सामाजिक कुरीतियों और ज्वलंत विषयों पर काव्य सृजन और लेख , पूर्व में अध्यापन कार्य, वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लेखन यही है जिंदगी, कविता संग्रह की लेखिका नारी गौरव सम्मान से सम्मानित पुष्पगंधा काव्य संकलन के लिए रचनाकार के लिए सम्मानित {भारत की प्रतिभाशाली हिंदी कवयित्रियाँ }साझा संकलन पुष्पगंधा काव्य संकलन साझा संकलन संदल सुगंध साझा संकलन Pride of women award -2017 Indian trailblezer women Award 2017