गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

जानता हूँ इस भँवर से मैं निकल सकता नहीं..।।
देख कर तूफाँ मगर रूख भी बदल सकता नहीं..।।
माना करूणा सत्य निष्ठा आजकल बेकार हैं..
फिर भी मैं अपने उसूलों को बदल सकता नहीं..।।
जहर नफरत का दिलों में घोलता है जो बशर..
साथ उनके मैं किसी कीमत पे चल सकता नहीं..।।
आग मे दुनिया की इतना जल चुका हूँ मैं नितान्त
आँच से अब आँसुओ की मैं पिघल सकता नहीं..।।

— समीर द्विवेदी नितान्त

समीर द्विवेदी नितान्त

कन्नौज, उत्तर प्रदेश