मुक्तक/दोहा

मुक्तक

दिल तो सजना का अटका चूड़ियों में
खनक ऐसी कहाँ जो है चूड़ियों में
अरमानों से बढ़ता अनुराग हर पल ,
सजना से सजी है दमक चूड़ियों में ।

खनक चूड़ियों की कहती बात दिल की
खनक से ही तो हृदय की कली खिलती
खनक प्यारी प्रियतम को तो भाती है ,
बात चूड़ियों की पिया दिल से मिलती ।

पहनूँ चूड़ियाँ सुहागिन की निशानी
टूटी जो हैं दूसरी भी आ जानी
समझातीं ये टूटती हुईं चूड़ियाँ ,
कहतीं चूड़ियाँ यह दुनिया है फ़ानी ।

— रवि रश्मि ‘अनुभूति ‘