गीत/नवगीत

सच में से विश्वास निकलता

सच में से विश्वास निकलता, नर-नारी से अलग न होता।
नर-नारी मिल पूरण होते, सच्चा प्रेम जब उरों में सोता।

प्रेम राह आसान नहीं है।
सच ने सच की बाँह गही है।
छल, कपट, प्रपंच नहीं कोई,
यह जीवन की राह सही है।
इक-दूजे को करें समर्पण, कोई भी मजबूर न होता।
सच में से विश्वास निकलता, नर-नारी से अलग न होता।।

इक-दूजे बिन नहीं रह सकते।
दूजे का दुख नहीं सह सकते।
सच में प्रेम जहाँ है होता,
कानूनों में नहीं बह सकते।
कितना भी मजबूर करो तुम, मजबूरी का संबन्ध न होता।
सच में से विश्वास निकलता, नर-नारी से अलग न होता।।

नर-नारी की राह एक है।
प्रेम जहाँ है, एक टेक है।
प्रेम में कोई माँग न होती,
धोखा है, वहाँ प्रेम फेक है।
प्रेम तो केवल करे समर्पण, प्रेम में कभी मन भेद न होता।
सच में से विश्वास निकलता, नर-नारी से अलग न होता।।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)